देहरादून: वन संपदा से स्थानीय लोगों की आय बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार प्रयासरत रही है. इसी क्रम में पहल करते हुए धामी सरकार लोगों की आजीविका से बढ़ाने के लिए कई नए प्रयोग करने की तैयारी में है. जानकारी के अनुसार सरकार उच्च हिमालयी क्षेत्रों सहित मैदानी इलाकों के लिए अलग-अलग योजनाओं पर काम कर रही है.
प्रदेश की धामी सरकार वानिकी क्षेत्र को वन पंचायतों और लोगों की आजीविका से जोड़ने के प्रयास में है. संबंध में बीते दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन अधिकारियों की बैठक लेकर लंबी चर्चा की थी. इसी बैठक में वानिकी क्षेत्र के राजस्व प्रतिशत को बढ़ाने पर कई मुद्दों पर चर्चा की गई. लीसा बिक्री के नियमों में भी बदलाव संभव है। लीसा बिक्री की ऑनलाइन व्यवस्था के तहत नीलामी की जाती है, स्थानीय लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पाता है। इसलिए मुख्यमंत्री स्तर से लीस ब्रिकी संभावनाओं को तलाशने के निर्देश दिए गए हैं।
काटे जाएंगे यूकेलिप्टस
जानकारी के मुताबिक, उच्च हिमालय क्षेत्रों में उद्यान विभाग के साथ मिलकर अखरोट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वेलनट मिशन के तहत काम किया जाएगा. इसमें अखरोट, बांस बांज, सागोन, पापुलर जैसी प्रजातियों को बढ़ावा दिया जाएगा. राज्य की आय में वानिकी क्षेत्र की हिस्सेदारी 2.5 से 3.5 प्रतिशत तक है, इसे राज्य की आर्थिकी का प्रमुख ग्रोथ ड्राइवर चिह्नित किया गया है. यूकेलिप्टस प्रजाति के पुराने पेड़ों को काटने के लिए कार्ययोजना में शामिल करने के निर्देश शासन स्तर पर दिए गए हैं।
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प्रदेश के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने मामले की जानकारी देते हुए कहा कि राज्य की आय में वानिकी क्षेत्र की हिस्सेदारी का प्रतिशत बढ़ाने के लिए कई कार्ययोजनाओं पर काम किया जा रहा है। मिशन वेलनट और नॉन टिबंर फॉरेस्ट प्रोडेक्ट को बढ़ावा देना इसी रणनीति का हिस्सा है। इसमें जड़ी-बूटियों के उत्पादन को भी शामिल करने की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। बता दें कि उत्तराखंड अखरोट उत्पादन में देश में जम्मू-कश्मीर के बाद दूसरे नंबर पर आता है।
अखरोट के अनुकूल परिस्थितियां
गौरतलब है कि उत्तराखंड में अखरोट उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। बावजूद बीते कुछ सालों में राज्य में इसका उत्पादन घटा है। राज्य में प्रति वर्ष करीब 18 से 20 हजार मीट्रिक टन अखरोट का उत्पादन होता है। नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, देहरादून, पौड़ी टिहरी, चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इसके उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। यही वजह है कि सरकार अब अखरोट उत्पादन को विशन मोड में शुरू करने जा रही है।