देहरादून। उत्तराखंड के दून विश्वविद्यालय, देहरादून में आयोजित प्रवासी उत्तराखण्डी सम्मेलन के पहले सत्र में हैस्को के संस्थापक पदम भूषण डॉ.अनिल जोशी ने कहा कि देश का कोई कोना हो या विश्व की कोई अन्य जगह, पारिस्थतिकी और विकास के बीच संतुलन की चर्चा केंद्र में है। हिमालयी प्रदेश होने के कारण हमारे यहां तो यह चर्चा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यूएनडीपी के स्टेड हेड प्रदीप मेहता ने कहा कि यह जरूरी है कि हम परंपरागत कृषि करें, लेकिन परिस्थिति और सुविधाओं के अनुरूप उसमें बदलाव किया जाना भी आवश्यक है।

नि:संदेह हिमालयी क्षेत्रों में विकास हुआ

वन विभाग के पूर्व पीसीसीएफ और आईआईटी रूड़की की फैकल्टी डॉ. कपिल जोशी ने कहा कि नि:संदेह हिमालयी क्षेत्रों में विकास हुआ है, लेकिन यह समीक्षा होनी भी जरूरी है कि उससे पारिस्थितिकी तंत्र पर कितना असर पड़ा है। पीसीसीएफ और यूकेएफडीसी की एमडी नीना ग्रेवाल ने कहा कि प्राकृतिक संपदा का उतना ही इस्तेमाल जरूरी है, जितने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने संबोधन में वनों पर आधारित रोजगार, ईको-टूरिज्म की आवश्यकता पर जोर दिया।

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एटरो रिसाइकिंलिंग प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ नितिन गुप्ता ने कहा कि ई-वेस्ट कोे रिसाइकिल करके हम इस समस्या को अवसर में बदल सकते हैं। सत्र के काॅर्डिनेटर पीसीसीएफ डॉ. एसपी सुबुद्धि ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सरकार के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने प्रवासी उत्तराखण्डियों की ओर से उठाए गए सवालों का भी जवाब दिया। प्रवासी उत्तराखण्डी डॉ. मायाराम उनियाल, रामप्रकाश पैन्यूली, सतीश पांडेय और राजेंद्र सिंह ने सुझाव दिए।