Vande Mataram 150th Anniversary: राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संसद में आज विशेष बहस का आयोजन किया जा रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) लोकसभा में इस बहस की शुरुआत करेंगे। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी वंदे मातरम् पर चर्चा होगी, जिसकी शुरुआती गृह मंत्री अमित शाह करेंगे। वंदे मातरम बहस से जुड़े शेड्यूल के मुताबिक, सत्ताधारी एनडीए सदस्यों को लोकसभा में इसके लिए तय कुल 10 घंटों में से तीन घंटे दिए गए हैं। लोकसभा के सोमवार देर रात तक चलने की संभावना है।
अब सवाल ये उठ रहा है कि, जिस गीत को गाने और सुनने के हर भारतीय की अंतरआत्मा अंदर तक हिल जाती है। रोम-रोम और रगों में देशभक्ति का परवान चढ़ जाता है। जिस गीत ने अंग्रेजों तक की नींव हिंला दी थी। आखिर उसपर संसद में चर्चा क्यों हो रही है? भारत की इस राष्ट्रीय गीत को गाने में मुसलमानों को दिक्कत क्यों होती है? इन्हीं सवालों के जवाब यहां जानने की कोशिश करते हैं।

देश के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम पर सोमवार को संसद में चर्चा होनी है। इस गीत को लेकर सड़क से संसद तक माहौल गर्मा गया है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय वंदे मातरम गाने से साफ इनकार कर रहे हैं। डेढ़ सौ साल पहले लिखे गए इस गीत को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में संसद में विस्तृत और विशेष चर्चा होगी। पीएम मोदी ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि ‘वंदे मातरम’ की आत्मा को तोड़कर अलग कर दिया गया, इस विभाजन ने ही देश के विभाजन के बीज बो दिए थे। वंदे मातरम के बारे में पीएम मोदी के विचारों का विपक्षी सदस्य बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। साथ ही, पिछले महीने, इस गीत की सालगिरह मनाने के एक कार्यक्रम के दौरान, उन्होंने कांग्रेस पर फैजाबाद में पार्टी के 1937 के सेशन में असली गीत से ‘जरूरी लाइनें हटाने’ का आरोप लगाया था।
सबसे पहले जानें क्या है वंदे मातरम का मतलब?
वंदे मातरम का मतलब है- मैं मां को नमन करता हूं… या फिर भारत माता मैं तेरी स्तुति करता हूं। इसीलिए इसे भारत माता का गीत भी कहा जाता है। इसमें वंदे संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका मतलब नमन करना होता है, वहीं मातरम इंडो-यूरोपीय शब्द है, जिसका मतलब ‘मां’ होता है. मातृभूमि के प्रति सम्मान जताने के लिए इस गाने का इस्तेमाल होता है।
- 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ये गीत लिखा था
- वंदे मातरम को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंदमठ में 1882 में प्रकाशित किया गया.
- 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने वंदे मातरम गाया था.
- 7 अगस्त 1905 को वंदे मातरम राजनीतिक नारे के तौर पर गाया गया था
- 1905 में बंगाल में विभाजन विरोधी और स्वदेशी आंदोलन के दौरान वंदे मातरम विरोध का सुर बना
- 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने विदेश में वंदे मातरम लिखा ध्वज फहराया था
- कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में वंदे मातरम गीत को पूरे भारत समारोहों के लिए अपनाया गया
- 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रीय गीत के तौर पर स्वीकार किया गया
अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध घोष था ‘वंदे मातरम’
‘वंदे मातरम’ सिर्फ एक फिल्मी गाना नहीं है। इसे 1875 में बंगाली लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था। बाद में उन्होंने इसे अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंद मठ’ में शामिल किया। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले हिंदू धार्मिक संप्रदायों ने इसे अपना युद्ध घोष बनाया। इसने उनके बौद्धिक और शारीरिक विद्रोह को जगाया। 1905 में जब लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया, तो यही गीत बंगाली एकता का आधार बना। जब भी अंग्रेज लोगों को चुप कराने की कोशिश करते, क्रांतिकारी ‘वंदे मातरम’ गाकर माहौल में जोश भर देते थे। उस समय ‘वंदे मातरम’ कोई हिंदू धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रतिरोध का एक नारा था। अंग्रेजों ने इसे प्रतिबंधित करने की कोशिश की, लेकिन यह बढ़ते क्रांतिकारी जज्बे को कुचलने में नाकाम रहे।
कब और कहां से शुरू हुआ विवाद?
अंग्रेजों को 1909 में मुस्लिम लीग के नेता सैयद अली इमाम के एक बयान से उम्मीद की किरण दिखी। इमाम और उनके कुछ समर्थकों को यह गीत ‘काफिरों का गीत’ लगा और उन्होंने मुसलमानों को इससे दूर रहने को कहा। जो नारा बंगाल की एकता का प्रतीक था और राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था, वह अंग्रेजों की सांप्रदायिक साजिश का शिकार हो गया। कांग्रेस को एक राष्ट्रगान की जरूरत थी। उन्होंने एक समिति बनाई, जिसमें जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे दिग्गज शामिल थे। टैगोर की सिफारिश पर ‘वंदे मातरम’ के पहले दो पैराग्राफ को राष्ट्रीय गीत के तौर पर चुना गया। इन पैराग्राफों में देश की भूमि, नदियों और बगीचों की प्रशंसा की गई थी। समिति ने बाकी पैराग्राफ छोड़ दिए थे, क्योंकि उनमें हिंदू देवी-देवताओं का जिक्र था।

संवैधानिक अनिवार्यता नहीं
24 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ को ‘जन गण मन’ के समान दर्जा मिलना चाहिए। लेकिन इसे संवैधानिक दर्जा नहीं मिल पाया। संविधान के अनुच्छेद 51A के अनुसार, हर भारतीय के लिए राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ गाना अनिवार्य है। ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता मिली, लेकिन इसे गाने के लिए कोई संवैधानिक अनिवार्यता नहीं है।
मुस्लिम क्यों इसे गाने का विरोध करते हैं
भारत में ‘वंदे मातरम’ के गाने को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। मुस्लिम इसे नहीं गाने के लिए सालों से इनकार करते आए हैं। कुछ मुस्लिम इसे राष्ट्रीय गीत के तौर पर स्वीकार नहीं करते। वे न सिर्फ पूरा गीत गाने से इनकार करते हैं, बल्कि ‘वंदे मातरम’ शब्द का इस्तेमाल करने से भी बचते हैं। इसकी वजह यह है कि गीत में मातृभूमि को देवी दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में दर्शाया गया है। उनका तर्क है कि यह इस्लाम की उस मान्यता के खिलाफ है, जो किसी और की पूजा करने की इजाजत नहीं देता।
इस्लामी स्कॉलर मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी और मुफ्ती ओसामा नदवी ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ बंकिमचंद्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनंद मठ’ का एक अंश है। इसकी तमाम पंक्तियां इस्लाम के धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं, जिसके चलते मुसलमान इस गीत को गाने से परहेज करता है। ‘वंदे मातरम’ गीत का पूरा अर्थ- ‘मां, मैं तेरी पूजा करता हूं ‘ ‘तुम जल से परिपूर्ण, फलों से समृद्ध, मलय पवन से शीतल, और हरी-भरी फसलों से ढकी हुई हो। मां, मैं तुम्हें वंदन करता हूं…’ यह मौजूदा गीत है, लेकिन इस गीत की शुरुआती पांच छंदों को हटा दिया गया था, जब उन्हें देखेंगे तो साफ जाहिर होता है कि यह गीत हिंदू देवी माता दुर्गा की स्तुति में गाया गया है, न कि भारत की मातृभूमि के लिए है।
नोमानी कहते हैं कि इस्लाम एकेश्वरवाद पर टिका एक मजहब है, जो एक अदृश्य ईश्वर की कल्पना कर उसकी उपासना करता है। उसके अलावा वो किसी भी सत्ता से इनकार करता है। एक देश या फिर मां की भी पूजा करना, इस एकेश्वरवाद के सिद्धांत से टकराव पैदा कर देता है। ‘वंदे मातरम’ गीत में मां के आगे सर झुकाने और उसकी पूजा करने की बात की जा रही है। वह कहते हैं कि इस गीत में पूरी तरह दुर्गा की आराधना करने की बात कही जा रही है, जबकि इस्लाम एक अदृश्य ईश्वर/ अल्लाह के सिवा किसी के सामने अपना सर झुकाने/ सजदा करने या पूजा करने से रोकता है।
उनका कहना था कि बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस गीत को मुस्लिम विरोध में लिखा था। गीत में देवी-देवताओं की आराधना है, जबकि इस्लाम में मूर्ति-पूजा हराम है। ‘वंदे मातरम’ का पूरा गीत देखें तो उसमें मंदिर का जिक्र है और दो जगह पर दुर्गा की बात कही गई। यह गीत अंग्रेजों और मुसलमानों के खिलाफ युद्ध करने के लिए निकलने वाले संतों की प्रशंसा करते हुए, मुसलमानों को कमतर दिखाया गया था, और ऊपर से जब ये संत ना केवल मातृभूमि की संतान थे, बल्कि देवी काली की भी संतान थे?
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