Vande Mataram 150th Anniversary: आज संसद के शीतकालीन सत्र का सातवां दिन (Parliament Winter Session) है। लोकसभा में वंदे मातरम् पर चर्चा (Discussion on Vande Mataram in Lok Sabha) हो रही है। पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) लोकसभा में इस बहस की शुरुआत की है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि जिस मंत्र ने, जिस जयघोष ने देश की आजादी के आंदोलन को ऊर्जा दी थी, प्रेरणा दी थी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था, उस वंदे मातरम का पुण्य स्मरण करना हमारा सौभाग्य है। गर्व की बात है कि वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बन रहे हैं।

पीएम मोदी ने बंकिम चंद्र चटर्जी को किया याद

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”देश आत्मनिर्भर बने। 2047 में विकसित भारत बनाकर रहें। इस संकल्प को दोहराने के लिए वंदे मातरम बहुत बड़ा अवसर है। वंदे मातरम की इस यात्रा की शुरुआत बंकिम चंद्र जी ने 1875 में की थी। गीत ऐसे समय लिखा गया था जब 1857 में स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सल्तनत बौखलाई हुई थी। भारत पर जुल्म जारी था. उस समय जो उनका राष्ट्रीय गीत था – ‘गॉड सेव द क्वीन’ – इसको घर घर पहुंचाने का षडयंत्र चल रहा था।

पीएम ने कहा कि वंदे मातरम् की 150 वर्ष की यात्रा अनेक पड़ावों से गुजरी है, लेकिन जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष हुए तब देश गुलामी में जीने के लिए मजबूर था। जब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और जब वंदे मातरम् का अत्यंत उत्तम पर्व होना चाहिए था, तब भारत के संविधान का गला घोंट दिया गया था। जब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए तब देशभक्ति के लिए जीने-मरने वाले लोगों को जेल की सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया था। जिस वंदे मातरम् के गीत ने देश को आजादी की ऊर्जा दी थी, उसके 100 वर्ष पूरे होने पर हमारे इतिहास का एक काला कालखंड दुर्भाग्य से उजागर हो गया। 150 वर्ष उस महान अध्याय और उस गौरव को पुनः स्थापित करने का अवसर हैं। मेरा मानना है कि देश और सदन, दोनों को इस अवसर को जाने नहीं देना चाहिए. यही वंदे मातरम् है, जिसने 1947 में देश को आजादी दिलाई।

पीएम ने कहा- वंदे मातरम् महान सांस्कृतिक परंपरा का आधुनिक अवतार

पीएम ने कहा- वंदे मातरम् महान संस्कृतिक परंपरा का आधुनिक अवतार है। बंकिम दा ने जब वंदे मातरम् की रचना की, तो वह स्वाभाविक की स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर बन गया। हर भारतीय का संकल्प बन गया। पीएम ने कहा- “त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी, कमला कमलदलविहारिणी, वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्, नमामि कमलाम्, अमलाम्, अतुलाम्, सुजलां, सुफलां, मातरम्” वंदे मातरम् महान संस्कृतिक परंपरा का आधुनिक अवतार है। बंकिम दा ने जब वंदे मातरम् की रचना की तो वह स्वाभाविक की स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर बन गया। हर भारतीय का संकल्प बन गया। कुछ दिन पूर्व वंदे मातरम् की 150वीं सालगिरह पर एक कार्य्रकम में मैंने कहा था- वंदे मातरम् अंग्रेजों के उस दौर में एक फैशन हो गया था, जब भारत को कमजोर, निकम्मा,आलसी दिखाने के लिए हमारे यहां के लोग भी वही भाषा बोलते थे। तब बंकिम दा ने वंदे मातरम् लिखा।

अंग्रेजो ने ‘बांटो और राज करो’ का रास्ता चुना

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”वंदे मातरम का जन-जन से जुड़ाव था इससे ये हमारी स्वतंत्रता संग्राम की लंबी गाथा अभिव्यक्त होती है, जैसे किसी नदी की चर्चा होती है। उस नदी के साथ एक सांस्कृतिक धारा प्रवाह, एक विकास यात्रा का धारा प्रवाह उसके साथ जुड़ जाता है। क्या कभी किसी ने सोचा है कि आजादी की पूरी यात्रा वंदे मातरम की भावनाओं से जुड़ा था। ऐसा भाव काव्य शायद दुनिया में कहीं उपलब्ध नहीं होगा। अंग्रेज समझ चुके थे कि लंबे समय तक भारत में टिकना मुश्किल है।

दरअसल राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने के मौके पर भारत सरकार की ओर से सालभर का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। 2 दिसंबर को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सभी दलों के प्रतिनिधियों की मीटिंग बुलाई थी। इसमें तय किया गया था कि वंदे मातरम् को लेकर 8 दिसंबर को लोकसभा और 9 दिसंबर को राज्यसभा में चर्चा होगी।

सबसे पहले जानें क्या है वंदे मातरम का मतलब?

वंदे मातरम का मतलब है- मैं मां को नमन करता हूं… या फिर भारत माता मैं तेरी स्तुति करता हूं। इसीलिए इसे भारत माता का गीत भी कहा जाता है। इसमें वंदे संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका मतलब नमन करना होता है, वहीं मातरम इंडो-यूरोपीय शब्द है, जिसका मतलब ‘मां’ होता है. मातृभूमि के प्रति सम्मान जताने के लिए इस गाने का इस्तेमाल होता है।

  • 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ये गीत लिखा था
  • वंदे मातरम को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंदमठ में 1882 में प्रकाशित किया गया.
  • 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने वंदे मातरम गाया था.
  • 7 अगस्त 1905 को वंदे मातरम राजनीतिक नारे के तौर पर गाया गया था
  • 1905 में बंगाल में विभाजन विरोधी और स्वदेशी आंदोलन के दौरान वंदे मातरम विरोध का सुर बना
  • 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने विदेश में वंदे मातरम लिखा ध्वज फहराया था
  • कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में वंदे मातरम गीत को पूरे भारत समारोहों के लिए अपनाया गया
  • 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रीय गीत के तौर पर स्वीकार किया गया

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