वाराणसी. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर बड़ी खबर सामने आ रही है. कोर्ट ने इस मसले पर बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने मस्जिद में स्थित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग (carbon dating) की मांग को खारिज कर दिया है. बता दें कि मस्जिद में जो कुंआ मिला है उसमें एक आकृति है जिसे एक पक्ष शिवलिंग बता रहा है, तो वहीं दूसरा पक्ष फव्वारा होने का दावा कर रहा है.
फिलहाल वाराणसी कोर्ट ने इस मामले में कार्बन डेटिंग (carbon dating) की मांग को खारिज कर दिया है. यानी अब ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग नहीं होगी.
क्या है कार्बन डेटिंग ?
कार्बन डेटिंग (carbon dating ) 50,000 साल पुरानी जैविक वस्तुओं के डेटिंग के लिए पुरातत्व की मुख्यधारा के तरीकों में से एक है. किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग का उपयोग किया जाता है. रेडियो कार्बन डेटिंग (radiocarbon dating) तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने किया था. 1960 में उन्हें इस काम के लिए रसायन का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया.
कार्बन डेटिंग तकनीक के जरिए वैज्ञानिक लकड़ी, चारकोल, बीज, बीजाणु और पराग, हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग और रक्त अवशेष, पत्थर और मिट्टी से भी उसकी बेहद करीबी वास्तविक आयु का पता लगा सकते हैं. जिस भी चीज में कार्बन की मात्रा होती है उसकी उम्र का इस तकनीक से पता लगाया जा सकता है. यानी कोई भी वस्तु कितनी पुरानी है इसका पता इस तकनीक से पता चल सकता है.
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