रायपुर. वास्तु मुख्यतः दिशाओं पर आधारित सैद्धांतिक विज्ञान है और ग्रहो से संबंधित दिशा भी होती है. अपनी दिशाओं से संबंधित कौन-कौन से दोष हमारे घर में मौजूद हैं, यह जानकर और दिशाओं से संबंधित ग्रहों को मजबूत करके हम सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं.
इतना ही नहीं वरन् वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष के नियमों के आधार पर दिशाओं एवं ज्योतिषीय ग्रहों में समन्वय स्थापित करके हम धन, संपदा, सुख, शांति, ऐश्वर्य संपदा प्राप्त कर सकते हैं, अगर आप भी अपने धन, स्वास्थ्य, रिश्तो के कारण तकलीफ पा रहे हैं, तो सिर्फ अपने ग्रह दोष ही नहीं अपने वास्तु दोष को भी पता कर लें.
कई बार अपने ग्रहो के विपरीत होने का प्रभाव होता है, कि हम वैसे ही वास्तु दोष वाले स्थान पर वास करने लगते हैं, जो दोष आपके ग्रहो का है. जैसे अगर आपका मंगल खराब हो अथवा राहु केतु जैसे ग्रहो से पापाक्रांत हो तो आप आग्नेय दिशा में मेनगेट अथवा पानी का स्थान जैसे जलीय कार्य करते हैं और हानि उठाते हैं.
ज्योतिष एवं वास्तु दोनों ही शास्त्रों में चार मुख्य दिशाओं एवं चार उपदिशाओं अर्थात कुल आठ दिशाओं को मान्यता प्राप्त है. ये आठ दिशायें और उनसे संबंधित ग्रह एवं देवता इस प्रकार हैं.
दिशा अधिपति ग्रह देवता
- पूर्व सूर्य इंद्र
- पश्चिम शनि वरुण
- उत्तर बुध कुबेर
- दक्षिण मंगल यम
- उत्तर-पूर्व गुरु शिव
- उत्तर पश्चिम चंद्र वायु देवता
- दक्षिण पूर्व शुक्र अग्नि देवता
- दक्षिण पश्चिम राहु-केतु नैति.
अगर किसी भी विषय में सामान्य से ज्यादा कष्ट हो या उस क्षेत्र विशेष से संबंधित कार्य में बिना वजह बाधा आती हो या कोई कार्य विशेष अटक- अटक कर या परेशानी से पूरा होता हो, तो फिर कुंडली में ग्रह दोष के साथ वास्तु दोष का भी ज्ञान कर लेना चाहिए.
अपने वास्तु और ग्रह दोष के अनुसार संपूर्ण उपाय कर निर्णय लेने और प्रयास करने से सभी इच्छित कामना जरूर पूरी होगी. कष्ट शमन हेतु किसी विद्धान आचार्य द्वारा होने वाली हानि का क्षेत्र जानकर उससे संबंधित शांति विधिपूर्वक किया जाना जिसमें विषेषकर रूद्राभिषेक, नागबलि-नारायण बलि आदि का विधान एवं राहु से संबंधित दान एवं मंत्रों के उपचार द्वारा दोष को दूर किया जा सकता है.
इसके अलावा दत्तात्रेय मन्त्र जाप, सूक्ष्म जीवों की सेवा करना साथ ही दीपदान करना चाहिए. इसके लिए पीपल के वृक्ष में तिल के तेल का दीपक जलाकर चीटियों के लिए आटा शक्कर का भोग निकलना चाहिए.