रायपुर. ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस बार शनि जयंती 30 मई को मनाई जाएगी. अमावस्या रविवार दोपहर 02 बजकर 59 बजे से शुरू होकर सोमवार 30 मई को शाम 05 बजकर 00 मिनट तक होगी. ज्योतिष के अनुसार अगर आपकी कुंडली में शनि प्रतिकूल है या बुरा प्रभाव दे रहा है तो आप इस दिन कुछ उपाय कर सकते है जिससे शनि देव आपसे प्रसन्न हो जाएंगे.

माना जाता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से सारे शनि के प्रकोप का भाजन बनने से बचा जा सकता है, यदि पहले से ही कोई शनि के प्रकोप से परेशान है तो ये उसके लिए भी यह दिन बहुत ही कल्याणकारी हो सकता है.

शनि जयंती के दिन आप शनि भगवान को तेल चढ़ाए. इससे आपके ऊपर शनि की कृपा बनी रहेगी. ऐसा आप हर शनिवार को भी कर सकते है.

शनि जयंती के दिन आप शनि देव के प्रिय काली चीजें जैसे काली उड़द, काले कपड़े आदि दान कर सकते है. इसके साथ ही आप लोहे की कील को काले कपड़े में बांधकर नदी में बहां सकते है.

शनि जयंती के दिन आप काली गाय को गड्डू खिलाएं व उसकी पूजा करें.

शनि जयंती पर आप किसी मंदिर में बैठकर शनि स्त्रोत का पाठ करें. इससे भगवान प्रसन्न हो जाएंगे.

शनि जयंती के दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाकर तिल के तेल का दीपक जलाएं इससे शनि देव की कृपा आप पर बनी रहेगी.

कैसे करें शनिदेव की पूजा

शनिदेव की पूजा भी बाकि देवी-देवताओं की पूजा की तरह सामान्य ही होती है. प्रातः काल उठकर शौचादि से निवृत होकर स्नानादि से शुद्ध हों. फिर लकड़ी के एक पाट पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर या फिर एक सुपारी रखकर उसके दोनों ओर तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं. शनिदेवता के इस प्रतीक स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें. इसके बाद अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें.

तत्पश्चात इमरती व तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य अपर्ण करें. इसके बाद श्री फल सहित अन्य फल भी अर्पित करें. पंचोपचार पूजन के बाद शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप भी करना चाहिए. माला जपने के पश्चात शनि चालीसा का पाठ करें व तत्पश्चात शनि महाराज की आरती भी उतारनी चाहिये.

ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के साथ-साथ वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है. हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत को करवा चौथ के समान ही माना जाता है. स्कन्द, भविष्य पुराण व निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है. भारत में वट सावित्री व्रत अमावस्या को रखा जाता है. इस व्रत को संपन्न कर सावित्री ने यमराज को हरा कर अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे.

वट सावित्री व्रत की विधि

वट सावित्री व्रत के दिन दैनिक कार्य कर घर को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए. इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. ब्रह्माजी के बाईं ओर सावित्री तथा दूसरी ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. कहा जाता है कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है.

इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं. टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख देना चाहिए. इसके पश्चात सावित्री व सत्यवान का पूजन कर, वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए. पूजन के समय जल, मौली, रोली, सूत, धूप, चने का इस्तेमाल करना चाहिए. सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर तीन बार परिक्रमा कर सावित्री व सत्यवान की कथा सुने. पूजन समाप्त होने के बाद वस्त्र, फल आदि का बांस के पत्तों में रखकर दान करना चाहिए और चने का प्रसाद बांटना चाहिए. यह व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है.