रायपुर। प्रसिद्ध टीवी एंकर और विचारक पुण्य प्रसून बाजपेयी शनिवार को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में थे. उन्होंने महात्मा गांधी, पंडित नेहरु से लेकर मोदी के काल पर उन्होंने बात की, उन्होंने कहा कि सबके समय में अलग-अलग हालात थे लेकिन ये हालात सबसे बुरे हैं.

गांधी ग्लोबल फैमिली द्वारा आयोजित “प्रतिरोध के स्वर” कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे पुण्य प्रसून ने अपने बात की शुरुआत दीन दयाल उपाध्याय के विचारों से की. उन्होंने कहा कि मैं जब आया तो पता चला कि इस हॉल का नाम दीन दयाल सभागार है. जिस फिलॉसफी को दीन दयाल उपाध्याय करते थे, वो जिस ह्यूमनिज्म की बात कहते थे उसमें सर्वोदय भी था, स्वदेशी भी था और ग्राम स्वराज भी था. ये तीनों बातों का जब हम जिक्र करेंगे और मौजूदा वक्त से करेंगे तो  ये तीनों चीजें रही हैं मौजूद. ठीक इसी तरह श्यामाप्रसाद मुखर्जी जिस अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने का जिक्र करते थे अब वो भी गायब है. एक तो यह है कि नाम लेकर नाम के जरिये आप कुछ न कुछ आपके जेहन में अक्सर आता है. कोई भी नाम आप लेगें उसके साथ एक फिलॉसफी भी जेहन में आती है.

चूंकि यह कार्यक्रम महात्मा गांधी के नाम से बने फाउंडेशन द्वारा किया गया है. बात वहीं से शुरु करना चाहिए. ये वाक्या आपके जेहन में भी होगा, क्यों मौजूं हैं इस वक्त में पत्रकारों और साहित्यकारों का होना. दिल्ली में लाल किले में हर बरस साहित्य सम्मेलन कवि सम्मेलन होता है. ये नेहरू जी ने ही शुरु कराया था. और नेहरु जी जब जा रहे थे तो सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त उनका पैर एक जगह अटक गया था वो लड़खड़ाए थे. पीछे उनके रामधारी सिंह दिनकर थे जिन्होंने उनको पकड़ा था, उन्हें संभाला था. नेहरु जी ने उन्हें शुभकामना दी तो उन्होंने कहा कि जब-जब सत्ता लड़खड़ाएगी तो उसे साहित्यकार ही सहेजेगा.

मौजूदा वक्त में क्या हो गया है साहित्यकारों को पत्रकारों को, लिखना-लेखनी बंद क्यों हो गया है, एक चिंता है शिक्षा को लेकर. पुण्य प्रसून ने अशोक बाजपेयी की कविता की पंक्तियां सुनाई. ये निराशा है या क्या है ये खुद तय कीजिये. हुआ क्या आजादी का जश्न था तो महात्मा गांधी दिल्ली में नहीं थे. पार्लियामेंट सजधज कर तैयार था. बंगाल के गवर्नर जनरल राजगोपालाचार्य थे हैदरी हाउस पहुंचे थे महात्मा गांधी से मिलने उन्होंने पूछा था रोशनी कर दूं बापू, उन्होंन कहा था नहीं. अंधेरे में ही गुजारे थे उन्होंने उस रात को. उस वक्त दिल्ली चकाचौंध थी और नेहरु आधी रात के सपने दिखा रहे थे देश को.

इसका एक दूसरा सच भी है. जिस वक्त दंगे हो रहे थे देश में, नाओखाली में महात्मा गाधी थे उस वक्त जो आखरी उपवास था उनका चार दिन का. राजगोपालाचारी को कहना पड़ा कि जो काम 80 हजार पुलिस नहीं कर पाई वो काम 80 साल के बुजुर्ग ने कर दिखाया. ये होती है नैतिक ताकत जो महात्मा गांधी के पास थी. महात्मा गांधी की शुरुआत की फिलासफी थी कि ईश्वर सत्य है बाद में उन्होंने महसूस किया कि सत्य ही ईश्वर है. उसी गुजरात की धरती से हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री भी तो आएं हैं, असत्य ही ईश्वर है वो फिलॉसफी बन चुकी है.

प्रसून ने नेहरु से लेकर मोदी की सत्ता के दौर पर भी अपने विचार रखे. उन्होंने इंदिरा द्वारा लगाई गई इमरजेंसी का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि उस दौर में भी ट्रांसपरेंसी थी पारदर्शिता थी. इमरजेंसी लगाई गई उसमें भी ट्रांसपरेंसी थी लेकिन अब वो ट्रांसपरेंसी गायब हो गई है.

देश के मौजूदा हालातों को लेकर भी उन्होंने चिंता जाहिर की. सीबीआई से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रेस कान्फ्रेंस पर उन्होंने अपनी बात रखी. बताया कैसे सरकार इंस्टीट्यूशन की स्वतंत्रता को खत्म करने की कोशिश कर रही है. सीबीआई के दफ्तर में एनआईए द्वारा आधी रात दी गई दबिश को लेकर उन्होंने कहा कि किस तरह एनआईए आधी रात को दबिश देकर फाईलों को अपने कब्जे में ले रही थी. सुप्रीम कोर्ट के जजों को प्रेस कान्फ्रेंस करना पड़ता है, न्यायपालिका से लेकर देश में हर तरफ दहशत का माहौल है. चीफ जस्टिस आफ इंडिया रंजन गोगोई के ऊपर लगे यौन शोषण के आरोपों का भी उन्होंने जिक्र करते हुए कहा कि चीफ जस्टिस खुद कह रहे हैं कि अगले सप्ताह कई महत्वपूर्ण मामलों में वे फैसला देने वाले हैं. जिसकी वजह से उन पर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं.

पुण्य प्रसून ने देश में शिक्षा की स्थिति पर भी चिंता जताई. मध्यप्रदेश सहित उन राज्यों का जिक्र किया जहां भाजपा मौजूदा समय में सत्ता में है या फिर हाल ही में चुनाव के बाद सत्ता से बाहर हो गई है. उन्होंने कहा कि देश में मौजूदा दौर में एक भी नया इंस्टीट्यूशन नहीं बना, भाजपा ने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ भी नहीं किया. प्रसून ने यूपीए काल की बातों को याद करते हुए बताया कि उस दौरान विश्व के चुनिंदा शैक्षणिक संस्थाओं में भारत के दो शैक्षणिक संस्थानों का ही नाम था, जिसमें आईआईटी और आईआईएम था. उस वक्त भाजपा ने शिक्षा के स्तर को लेकर चिंता जताई थी और शिक्षा के क्षेत्र में नए वैश्विक स्तर के मॉडल लाने की बात कही थी लेकिन सत्ता में आने के बाद पांच साल निकल गए. सरकार ने कुछ भी नहीं किया. प्रसून ने चिंता जताई कि आज देश में उच्च शिक्षा के लिए कोई भी अच्छे संस्थान मौजूद नहीं है. उच्च शिक्षा के लिए छात्र विदेश जा रहे हैं. विदेश जाने के आंकड़ों में लगातार वृद्धि हो रही है. पैसा उनकी फीस के रुप में देश के बाहर डॉलर के रुप में जा रहा है. जो शिक्षा लेने बाहर जा रहे हैं उनमें से गिनती के लोग ही देश में वापस आ रहे हैं.

प्रसून ने कहा कि एक समय भाजपा की लाईन स्वदेशी, ग्राम स्वराज थी वह उसके साथ खड़ी थी लेकिन आज बीजेपी कहां पहुंच गई. कांग्रेस की लाइन थी कॉर्पोरेट कल्चर लेकिन आज बीजेपी कांग्रेस के उस कल्चर को तो पकड़ नहीं पाई लेकिन स्वदेशी से कार्पोरेट कल्चर पर आ गई. और कांग्रेस के पास अब वापसी का कोई विकल्प भी नहीं रह गया था सिवाय किसान मॉडल के. भाजपा कार्पोरेट के साथ जा खड़ी हुई तो कांग्रेस किसानों के मॉडल पर आ गई. देश की कुल जीडीपी का 48 प्रतिशत हिस्सा कृषि है.

प्रसून ने बैंक के कर्ज और आरबीआई की हालत का भी जिक्र किया. उन्होंने प्रदूषण के हालात पर भी चिंता जताई. पुण्य प्रसून तकरीबन सवा दो घंटे लगातार अपनी बात रखते रहे. उनसे वहां मौजूद कई लोगों ने प्रश्न किया जिनके सवालों का जवाब भी उन्होंने दिया जिसमें पत्रकार से लेकर आम आदमी भी थे. सवाल जवाब के क्रम में किसी राजनीतिक दल से जुड़ी महिला प्रत्याशी ने अपना परिचय देते हुए कुछ राजनीतिक सवाल भी पूछे जिस पर प्रसून ने उनके सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि चुनाव का समय है, आचार संहिता भी लगी हुई है और वे किसी राजनीतिक व्यक्ति के सवालों का जवाब नहीं देंगे.

बीएसएनल के बर्बादी के कागार पर पहुंचने और जीयो के मुनाफे, अंबानी से लेकर अडाणी तक प्रसून ने क्या कहा. उसके लिए आप इत्मीनान से पूरा वीडियो देखिये. तथ्यों के साथ सच्चाई शायद ही आपको टीवी पर देखने या अखबारों में पढ़ने मिलेगी.

 

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