रायपुर। शहर ही क्या आज गाँव-गाँव सामान्य घरों की बारात बिना कार नहीं निकलती, ऐसे में संपन्न परिवार का कोई युवा अगर बैलगाड़ी में बारात लेकर आ जाए तो चकित होना लाजिमी है. आज गाँव-गाँव में बैंड बाजे के साथ धूमाल और डीजे की धूम है, लेकिन बारात में अगर गड़वा बाजा और लोक कलाकार नजर आए तो चौंकना स्वभाविक है. क्योंकि समान्यतः ऐसा देखने को मिलता ही नहीं. इसलिए जब एक गाँव में बैलगाड़ी में बारात, बारात में गड़वा बाजा और लोक-कलाकार दिखाई दिए तो यह चर्चा का विषय बन गया. सोशल मीडिया में तस्वीरें और वीडियो वायरल होने लगे.
कहानी छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के जंगलपुर गाँव की है. ये कहानी है दुल्हन ओनिशा के परिवार की. ये कहानी उस सपने की है जिसे देखा दुल्हन के भाई पूर्णानंद ने था. लेकिन इससे पहले कि वो अपना सपना पूरा कर पाता इस जहाँ से चल बसा. पूर्णानंद सुरक्षा बल का जवान था. वह सीआरपीएफ में था. फ़रवरी 2020 में बीजापुर में नक्सली मुठभेड़ में वो शहीद हो गया. पूर्णानंद जिस दौरान शहीद हुआ था उसके एक महीने बाद उसकी शादी होने वाली थी.
पूर्णानंद अपनी शादी सादगी पूर्ण तरीके, लोक संस्कृति और ग्रामीण परिवेश में करना चाहता था. लिहाजा उन्होंने सपना देखा था कि वो आज की तरह मोटर-कार में बारात लेकर नहीं जाएगा. वह कानफोड़ू डीजे या तामझाम वाला धुमाल बजवाएगा. वह बैलगाड़ी, गड़वा बाजा और लोक-कलाकारों के साथ अपनी बारात निकालेगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
पूर्णानंद के इस अधूरे सपने को उसकी बहन ओनिशा ने अधूरा नहीं रहने दिया. अपने भाई के इस सपने को ओनिशा ने अपने होने वाले पति से साझा किया. ओनिशा ने अपने होने वाले पति शैलेन्द्र से कहा कि आप उनका ये अरमान पूरा कर दीजिए. मेरा भाई तो बैलगाड़ी में बारात निकाल नहीं पाया, आप मुझे लेने मेरे घर बैलगाड़ी में सवार होकर आ जाइये.
ओनिशा के इस निवेदन को शैलेन्द्र ने सहज रूप में स्वीकार किया. ओनिशा के भाई के सपने के साथ अपनी दुल्हनिया के अरमान को भी उन्होंने पूरा किया. शैलेन्द्र अर्जुनी से जंगलपुर जब सज-धजे बैलगाड़ी, गड़वा बाजा और लोक-कलाकारों के साथ पहुँचा तो यह देखकर सब लोग चौंक गए. अधिकतर लोगों को तो ये पता भी नहीं था कि असल में ये सब हो क्या रहा है. क्योंकि अब गाँव वालों को भी यह आदत हो चुकी है कि बारात मोटर-कार में आती है, बैलगाड़ी में नहीं. कम से कम दूल्हा तो बैलगाड़ी में आता ही नहीं. लेकिन ये बारात कुछ और ही थी.
वास्तव में बारात अनूठी थी. प्रेरणादायी थी. भावों से भरी हुई थी. ये बारात आपसी प्यार और समझ और संवेदनाओं से जुड़ी थी. यह बारात आडंबरों से परे सामाजिक और जागृत चेतना का संदेश देने वाली थी.
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