रायपुर. विधानसभा में छत्तीसगढ़ विनियोग विधेयक पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विपक्षी भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए एक-एक मुद्दे पर तीखा प्रहार किया. सीएम भूपेश बधेल ने पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पर छत्तीसगढ़ी में चुटकी लेते हुए कहा कि  कथरी ओढ़ के घी पिये के काम डॉक्टर साहब बने ले करत रिहिस.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एलान किया कि विधायकों की जनसंपर्क राशि बढ़ाकर 10 लाख किया गया. सीएम ने सदन में कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों के सम्मान में कोई कमी नहीं होगी. चाहे वह किसी भी दल का क्यों न हो. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष ने कई सुझाव दिया है. सड़क की बात कहीं. एडीबी की लोन का जिक्र किया. 15 साल सरकार में रहे. बिलासपुर और रायपुर की दूरी 120 किलोमीटर है. हर साल 8 किलोमीटर भी बनाते तो अब तक बन गया होता. 2006 में केन्द्र सरकार ने इस सड़क की स्वीकृति प्रदान की थी. आप 2006 से 2016 तक भूमिपूजन नहीं कर सके और हमसे उम्मीद कर रहे है ढाई महीने में हम सब सब कुछ कर सके.

शिक्षाकर्मियों के लिए किया 1900 करोड़ का प्रावधान

उन्होंने कहा कि शिक्षाकर्मियों के साथ क्या किया था, सब जानते है. इतना सम्मान करते हैं कि दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था. 38 शिक्षाकर्मियों की आंदोलन के दौरान मौत हो गई. संविलियन किया था लेकिन उसका प्रावधान हम लोगों को करना पड़ा. इसके लिए हमने 1900 करोड़ का प्रावधान किया है.  पिछली सरकार ने जो कार्यशैली छत्तीसगढ़ में बनाई है उसे ठीक करने में थोड़ा वक़्त लगेगा.

कौन सी सरकार लोन नहीं लेती

अजय चन्द्राकर ने चार्वाक दर्शन का जिक्र किया. कथरी ओढ़ के घी पियो. जब तक जियो उधार लेकर घी पियो ये चार्वाक की नीति रही. कौन सी सरकार लोन नहीं लेती. आप सरकार में थे तब लोन नहीं लेते थे क्या? ये बात अलग है कि प्राथमिकताएं अलग-अलग होती हैं. आप ने लोन लिया था अपव्यय करने, मोबाइल फोन बांटने के लिए, स्काई योजना को लेकर खूब प्रचार किया. 840 करोड़ का बिल आया और पटाया केवल 189 करोड़, बाकी पटाने के लिए हम पर छोड़ दिया. कथरी ओढ़ के घी पिए के काम डॉक्टर साहब ह बने ले करे हे.

इनके और हमारे विकास की परिभाषा अलग

इनके विकास की परिभाषा बिल्डिंग बनाओ, जंगल काटो, आदिवासियों को उजाड़ो, और हमारी परिभाषा है गांव, किसान, आदिवासियों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाया जाए. ऋण माफ किया जाए.ये लोग बहुत हंसी उड़ाए, नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी ये सब इन लोगों के समझ नहीं आएगा. ये लोग गांव छोड़ चुके हैं. नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी को लेकर बड़े चिंतित थे. जो लोग गांव से जुड़े है इसका मजाक नहीं उड़ा सकते, जो ग्रामीण समस्या से जुड़े है इसका उपहास नहीं उड़ा सकते. जो गांव से कट चुके हैं वहीं ऐसा कर सकता है.  2013 में ही मुझे अध्यक्ष बना दिया गया था, जब हम महतारी न्याय यात्रा करके लौटे तब एक मंत्री ने मुझसे पूछा की पैसा कहाँ से लाये, हमने कहा कि कार्यकर्ताओं से व्यवस्था की थी.

सेवक कह लो लेकिन चौकीदार मत कहिएगा

नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी के लिए पूछ रहे है पैसा कहां से लाओगे. सोच बदलो, सितारे बदल जाएंगे. हम मनरेगा, कृषि जैसे विभागों में चल रही योजनाओं से ही इसे जोड़ना है. इसके लिए अतिरिक्त बजट की जरूरत नहीं है. करोड़ों रुपये का सीसी रोड बना दिया गया लेकिन गांवों में मवेशियों के बैठने के लिए प्लेटफॉर्म नहीं बनवा सके. परंपरागत तालाबों के पानी को रोक दिया. आज रायपुर के तालाब सूख रहे है. अवैज्ञानिक सोच की वजह से छत्तीसगढ़ 15 साल पिछड़ा है. किसान आत्महत्या नहीं करते. पिछली सरकार में प्रतिदिन 4 किसान मरते थे. मुझे लेकर अजय चंद्राकर ने कहा कि अब तक सेवक नहीं कहा. मुझे जनता ने चुना है तो जनता का प्रतिनिधि हूँ. जरूर मुझे सेवक कह लीजिये लेकिन चौकीदार मत कहिएगा.

एक मार्च से दिलाया जाएगा चिटफंड कंपनी का पैसा

चिटफंड कंपनी का जिक्र किया. आपके नेता विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए रोजगार मेला में कंपनी का उद्घाटन किया था. पैसा लूटकर कम्पनी वाले जाए और जेल जाए बेचारे एजेंट. इसलिए ही हमने तय किया है ऐसे एजेंट के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेंगे. मैं तो मंत्रालय में चिटफंड कम्पनी की फ़ाइल ढूंढता रहा, लेकिन इसे लेकर कोई फ़ाइल नहीं है. हम पैसे वापस कराएंगे. 1 मार्च से पीएसीएल कंपनी से पैसे दिलाने का काम शुरू करने जा रहे हैं.

आउटसोर्सिंग से आरक्षण खत्म करने की कोशिश

आउटसोर्सिंग से आरक्षण खत्म करने की कोशिश की गई. बस्तर, सरगुजा के आदिवासियों का हक मारा गया. जब बच्चे छत्तीसगढ़ के ही थे, तो सीधी भर्ती क्यों नहीं की गई थी? खजाने से पैसा निकले तो हितग्राहियों तक पहुँचे ये हमारी नीति है. आउटसोर्सिंग को लेकर पूछा गया कि कितने बंद किये, सबसे पहले हमने मुख्यमंत्री फेलोशिप योजना को ही बंद कर दिया है.

आदिवासियों को दिलाएंगे वन अधिकार पट्टा

वन अधिकार पट्टा संवेदनशील मामला है. हमने इसे लड़ाई भी लड़ी है. हमारे यहां 8 लाख 55 हजार दावें किये गए. पर व्यक्तिगत दावे है, लेकिन उन दावों का जिक्र है ही नहीं जो सामुदायिक है, जिसका फायदा पूरा गांव उठाता. इसे आप समझ ही नहीं पाए. सामुदायिक दावों का एक भी निराकरण पिछली सरकार ने नहीं किया. व्यक्तिगत दावों में भी 8 लाख में से 4 लाख 51 हजार को खारिज कर दिया. जब उच्चतम न्यायालय में जवाब देने की पारी आई तो पिछली सरकार ठीक से जवाब तक नहीं दिया. इसलिए ही आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है. मैं आश्वासन देता हूँ सैकड़ों आदिवासी भाई-बहनों को उनके हक उन्हें दिलाया जाएगा. हम सुप्रीम कोर्ट में जवाब देंगे. हमने यह भी तय किया है कि 4 लाख 51000 दावों को खारिज किये जाने के फैसले का दोबारा परीक्षण करेंगे.

जानेंगे एमओयू के बाद भी उद्योग क्यों नहीं लगे

टाटा की जमीन वापस करने की जगह उद्योग लगाने का भी उल्लेख किया. जब टीएस सिंहदेव, रविन्द्र चौबे नेता प्रतिपक्ष थे, तब भी ये सवाल उठाते थे कि एमओयू किया है तो उद्योग कब लगेंगे. पिछली सरकार एमओयू वाली सरकार थी. जितने एमओयू हुए है उन उद्योगों के साथ मैं जल्द बैठक करूँगा. ये जानने की कोशिश करूँगा कि आखिर एमओयू करने के बाद भी उद्योग क्यों नही लगे. इस पर सत्यनारायण शर्मा ने चुटकी लेते हुए कहा कि मनीऑर्डर फ़ॉर यू इसका पूरा मतलब है.

लोगों को रोजगार मिले हमारी प्राथमिकता

औद्योगिककरण की शुरुआत तो कांग्रेस ने ही किया था, लेकिन पिछली सरकार ने तो केवल बेचने का काम किया है. नगरनार स्टील प्लांट को भी निजी हाथों में देने की चर्चा चल रही थी, जिसका निर्माण अब तक केवल 60 फीसदी हुआ है. हमने कोंडागांव में मक्का प्रोसेसिंग प्लांट के लिए भूमिपूजन किया है. हमने देश के उद्योगपतियों से कहा है कि आइए देश भर का अध्ययन कर बेहतर उद्योग नीति के लिए सुझाव दीजिये. लेकिन इस शर्त पर नहीं कि जंगल-आदिवासियों को उजाड़ा जाए. हम ज्यादा से ज्यादा हॉर्टिकल्चर कॉलेज खोलेंगे. नैसर्गिक वातावरण को जलाकर राखड़ में बदल दो ये हमारा उद्देश्य नहीं है. इन सबके बीच लोगों को रोजगार मिले ये हमारी प्राथमिकता है.

झीरम घाटी केवल भावनात्मक नहीं न्याय की भी बात

– झीरम घाटी केवल भावनात्मक नहीं है. ये न्याय की भी बात है. राज्य सरकार की सहमति के बाद भी एनआईए जांच शुरू की गई. ये मामला भारत सरकार का नहीं है. ये राज्य का है. फाइनल रिपोर्ट एनआईए ने सबमिट कर दी है. जो आयोग है उसके ज्यूरिडिक्शन में ही षड्यंत्र की जांच का बिंदु नहीं है. एनआईए ने जब पहली एफआईआर दर्ज की तब गणपति समेत एक और नक्सली का नाम है लेकिन दूसरी एफआईआर में नाम हटा दिया गया. इसलिए जांच जरूरी है. इस लिए ही हमने एसआईटी का गठन किया है. एनआईए ने सभी गवाह तक से पूछताछ नहीं की. सेंटर एजेंसी जब जांच पूरी नहीं कर रही तो राज्य की एजेंसी करेगी. केन्द्रीय गृहमंत्री से क्यों नहीं कहते कि जांच एसआईटी को सौप दिया जाए. एनआईए की खुद की फाइंडिंग में 50 से अधिक जगहों पर षड्यंत्र का जिक्र है. हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उन तथ्यों तक जाए. इसलिए हम जांच आगे ले जा रहे हैं.