सुशील सलाम, कांकेर. समरस पंचायत का अर्थ है, जहां पर गांव वालों की आपसी सहमति से पंचायत पदाधिकारियों को चुना जाता है. इसमें वोटिंग नहीं होती है. जो ग्राम पंचायत समरस के तहत अपनी पंचायत का निर्माण करती है, उस पंचायत को राज्य सरकार प्रशंसा स्वरूप एक तय धनराशि देती है. लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से अब तक पंचायत को यह राशि नहीं मिल पाया है.
भानुप्रतापपुर विधानसभा से बांसकुंड पंचायत के सरपंच झाड़ू राम मंडावी बताते हैं कि गांव का सौहार्द बनाए रखने, फिजूलखर्ची से बचाव और विवाद से बचने के लिए ही समरस पंचायत की जाती है, साथ ही इस गांव में दो पंच वर्षीय चुनाव हुआ है, और बांसकुंड पंचायत अंतर्गत तीन आश्रित गांव बनोली, ऊपर तोनका, तोनका भी आते हैं, साथ ही शासन के द्वारा दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि भी अब तक नहीं मिली हैय
प्रोत्साहन राशि नहीं मिलने से ग्रामीणों में नाराजगी है. उनका कहना है कि शासन से वो प्रोत्साहन राशि की नहीं बल्कि वे गांव का विकास करने की शासन से मांग कर रहे हैं. ग्रामीण बताते है कि गांव में दो बार से पंचायत चुनाव निर्विरोध होता आ रहा है, जिसके बावजूद का शासन-प्रशासन द्वारा गांव का विकास नहीं किया जा रहा है. जंगलों से घिरे गांव में न तो कोई नेता-जनप्रतिनिधि पहुंचता है, और ना ही सरकारी अमला.