प्रमोद निर्मल, मोहला मानपुर। जिले के धुर नक्सल प्रभावित मानपुर ब्लॉक में दो गांवों के बीच एक बड़ा नाला वर्षों से त्रासदीपूर्ण आवागमन का कारण बना हुआ था। बारिश में स्कूली बच्चे इस खतरनाक नाले को पार कर जान जोखिम में डालकर स्कूल आते-जाते थे। वहीं ग्रामीणों की राशन ढुलाई और अन्य मूलभूत आवागमन भी इस नाले ने प्रभावित कर रखा था। शासन-प्रशासन ने पुल निर्माण के लिए ग्रामीणों की मांग को दरकिनार कर दिया था. ऐसे में ग्रामीण आदिवासियों ने अपने तकलीफों को खुद दूर करने का निर्णय लिया और बांस-बल्लियों की कारीगरी से नाले में देसी पुल का निर्माण किया है। यह पुल न केवल स्कूली बच्चों और ग्रामीणों के आवागमन को सुगम बना दिया बल्कि शासन और प्रशासन को ये पुल क्षेत्रीय विकास का आईना भी दिखा रहा है।
बस्तर को भी जोड़ता है मार्ग पर नाले ने कर दिया था बेड़ागर्क
मामला बीहड़ों के बीच लाल खौफ के साये में मौजूद धुर नक्सल प्रभावित ग्राम पंचायत बसेली का है। यहां बसेली और बस्तर के मुहाने पर मौजूद खुर्सेखुर्द दो गांवों के बीच मुसीबत का सबब बने बड़े नाले हैं, जहां ग्रामीणों ने अस्थायी पुल का निर्माण किया है। ग्रामीणों के मुताबिक नाले में सीने से ऊपर तक पानी बहता है। दर्जनभर स्कूली बच्चे खुर्से से बसेली स्कूल पढ़ने आते हैं। इन बच्चों को जान जोखिम में डालकर स्कूल आवागमन करना पड़ता है। यही नहीं बसेली में पंचायत मुख्यालय होने के चलते राशन अन्य जरूरी ग्रामीण आवागमन इसी मार्ग से होता है। यही नहीं बस्तर के मुहाने पर होने के चलते बस्तर के कांकेर जिले में दाखिल होने के लिए भी ये मार्ग उपयुक्त है।


नाला पार कर स्कूल जाते थे बच्चे, राशन लाना भी दूभर था, अब सुधरे हालात
ग्रामीणों के मुताबिक उन्होंने शासन प्रशासन के सामने आवेदन देकर यहां पुल बनाने की मांग की, लेकिन किसी ने उनकी फरियाद नहीं सुनी। आखिरकार शासन प्रशासन के आश्वासनों और उनसे उम्मीदों को दरकिनार कर दोनों गांवों के ग्रामीण एक दिन दोनों गांवों में निजी काम काज व खेती किसानी बंद कर हर घर से ग्रामीण इस नाले के मुहाने पर जुटे। ग्रामीणों ने बांस की मोटी टाट (चटाई) बनाई। जिससे नाले के दोनों छोर को कसकर ढहने से बचाया। वहीं बीच सड़क बस रहे नाले के ऊपर बल्लियों को संजो कर उसके ऊपर बांस से बनी टाट बिछा दी। इस तरह से ग्रामीणों ने लकड़ी और बांस के सहारे ऐसा मजबूत पुल बना दिया कि अब स्कूली बच्चे बिना नाला पार किए इस देसी पुल से स्कूल आवागमन करते हैं। वहीं ग्रामीण भी राशन समेत विभिन्न कार्यों के लिए सुगमता से इस मार्ग पर आवागमन कर पा रहे हैं। बस मुरूम की सेज बिछ जाए फिर इस पुल से ट्रैक्टर व अन्य चारपहिया वाहन भी गुजर जाएंगे।

ग्रामीणों ने बुलाकर बताई पीड़ा, Lalluram.com बना नायाब कारीगरी का गवाह
ग्राम प्रमुखों व ग्रामीणों ने अपनी इस पीड़ा को Lalluram.com के साथ साझा किया। उनके बुलावे पर हमारी टीम पुल निर्माण के दौरान रोज मौके पर ही मौजूद रहे। दोनों गांवों में पोलो (क्षेत्रीय अवकाश) घोषित कर दोनों गांव के प्रत्येक घरों से जुटे ग्रामीणों ने सुबह से देर शाम तक अथक मेहनत की। बिना किसी किताबी तकनीकी ज्ञान कौशल के अपने देसी जुगाड़ पद्धति से पुल के लिए लकड़ी के संसाधन जुटाकर अपनी कारीगरी से इस पुल का निर्माण सुनिश्चित किया। ग्रामीणों ने इस बीच अपनी पीड़ा बताई। उन्होंने बताया कि आवेदन निवेदन के बाद भी शासन-प्रशासन ने उनकी समस्या का निदान नहीं किया। नतीजतन उन्होंने शासन और प्रशासन से उम्मीद को दरकिनार कर खुद पुल बनाया और और अपनी तकलीफों पर लगाम लगाया।
भ्रष्टाचार के पुल बनाने वालों और चुप रहने वाले जिला प्रशासन को सीख
इस पुल से ग्रामीण आवागमन तो सुलभ हुआ ही है लेकिन जुगाड़ से बने इस देसी पुल ने उन प्रशासनिक कारिंदो और जिला प्रशासन को ये सबक दिया है कि जो तकनीकी ज्ञान कौशल से परिपूर्ण होकर भी ऐसे पुल का निर्माण कराते हैं, जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर चंद समय में ही जमींदोज हो जाते हैं। मानपुर ब्लॉक के कोहका ग्राम पंचायत में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा पुल और इसे बनवाने वाले प्रशासनिक अमले समेत इस भ्रष्टाचार पर आंख मूंदे हुए जिला प्रशासन को इस देसी पुल के निर्माण से इस बात की सीख लेने की जरूरत है तकलीफों के बीच विकास की राह को बिना किसी भ्रष्टाचार व गैरजिम्मेदारी के कैसे फलीभूत किया जाता है।
अब शासन-प्रशासन क्या लेंगे संज्ञान?
खुद पुल बनाकर अपनी तकलीफों को हराकर ग्रामीण आदिवासीयों ने अपनी राह आसान तो कर ली, लेकिन बड़ा सवाल ये अब भी कायम है कि जिला प्रशासन क्या अब ग्रामीण आदिवासियों की जरूरत को समझने में दिलचस्पी दिखाएगा। क्या ग्रामीणों की वर्षों पुरानी मांग पर संज्ञान लेकर क्षेत्र जिम्मेदार जनप्रतिनिधि व जिले की कलेक्टर पुल निर्माण के लिए पैरवी करेंगे? क्या शासन-प्रशासन यहां पुल निर्माण पर गंभीरता दिखाएगा। ये देखना दिलचस्प होगा। हमने अपने सामाजिक सरोकार के तहत ग्रामीण आदिवासियों की तकलीफ को समाचार के जरिए शासन-प्रशासन की चौखट में पहुंचा दिया है। शासन व जिम्मेदार प्रशासन क्या अब असल क्षेत्रीय विकास के प्रति गंभीर होगा, ये आने वाला वक्त बताएगा।
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