मार्गशीष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में इस दिन का बड़ा महत्व बताया गया है क्योंकि आज ही के दिन त्रेता युग में भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था. भारत के साथ ही नेपाल में भी विभिन्न मंदिरों और स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था.
तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम ने विवाह द्वारा मन के तीनों विकारों काम, क्रोध और लोभ से उत्पन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया है. हिंदू पौराणिक कथाओं में राम और सीता की महत्ता को देखते हुए इनके सम्मान में ही विवाह पंचमी का शुभ मांगलिक त्योहार मनाया जाता है. त्रेता युग में पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था. उस समय मुनि विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा करने के उद्देश्य से अयोध्या के महाराज दशरथ से उनके पुत्रों राम एवं लक्ष्मण जी को माँग कर ले गए.
यज्ञ की समाप्ति के पश्चात विश्वामित्र जी जनक पुरी के रास्ते से वापसी आने के समय राजा जनक के सीता स्वयंवर की उद्घोषणा की जानकारी मिली. मुनि विश्वामित्र ने राम एवं लक्ष्मण जी को साथ लेकर सीता के स्वयंवर में पधारें. सीता स्वयंवर में राजा जनक जी ने उद्घोषणा की जो भी शिव जी के धनुष को भंग कर देगा उसके साथ सीता के विवाह का संकल्प कर लिया. स्वयंवर में बहुत से राजा महाराजाओं ने अपने वीरता का परिचय दिया परन्तु विफल रहे.
इधर जनक जी चिंतित होकर घोषणा की लगता है यह पृथ्वी वीरों से विहीन हो गयी है, तभी मुनि विश्वामित्र ने राम को शिव धनुष भंग करने का आदेश दिया. राम जी ने मुनि विश्वामित्र जी की आज्ञा मानकर शिव जी की मन ही मन स्तुति कर शिव धनुष को एक ही बार में भंग कर दिया. उसके उपरान्त राजा जनक ने सीता का विवाह बड़े उत्साह एवं धूम धाम के साथ राम जी से कर दिया. साथ ही दशरथ के तीन पुत्रों भरत के साथ माध्वी, लक्ष्मण के साथ उर्मिला एवं शत्रुघ्न जी के साथ सुतकीर्ति का विवाह भी बड़े हर्ष एवं धूम धाम के साथ कर दिया.
सीता की जन्मभूमि जनकपुर और राम जन्मभूमि अयोध्या इन दोनों ही जगहों पर विवाह पंचमी के दिन को पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है. इस पवित्र विवाह का स्मरण करते हुए इस दिन शहर भर में हजारों दीए जलाए जाते हैं और बड़े पैमाने पर विवाह झांकियां निकाली जाती हैं. भृगु संहिता में विवाह पंचमी के दिन को विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त के रूप में बताया गया है. इसके बावजूद लोग इस दिन अपनी बेटियों की शादी करना पसंद नहीं करते.
इसके पीछे उनकी धारणा यह है कि इस दिन विवाह होने से की वजह से ही देवी सीता और भगवान राम को वैवाहिक जीवन का पूर्ण सुख नहीं मिला था इसलिए लोग कुंडली दिखाकर किसी विद्धान ज्योतिष की सलाह से ही विवाह का शुभ मूहुर्त निकालते हैं, किंतु मार्गशीर्ष पक्ष की शुक्ल पक्ष की पंचमी राम-जानकी विवाह के उपलब्ध में विवाह पंचमी के रूप में आज भी मनाया जाता है.