Shri Jagannath Rath Yatra 2025: भक्तों का इंतजार अब खत्म होने वाला है. 15 दिनों के लंबे इंतजार के बाद कल यानी 26 जून को महाप्रभु जगन्नाथ के पट खुल जाएंगे. कल श्री जगन्नाथ मंदिर में नेत्रोत्सव मनाया जाएगा. जिसके बाद महाप्रभु जगन्नाथ, स्वामी बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ चतुर्थ विग्रहों के दर्शन होंगे. भगवान कल नवयौवन रूप में अपने भक्तों को दर्शन देंगे. इसके दूसरे दिन यानी 27 जून को तीनों भगवान श्री मंदिर से बाहर निकलेंगे. जिसके बाद वे रथारूढ़ होकर अपनी मौसी गुंडिचा के घर जाएंगे. इसी परंपरा को रथयात्रा (Rath Yatra 2025) या गुंडिचा यात्रा के नाम से जाना जाता है.

बता दें कि हर वर्ष की तरह इस बार भी भगवान श्री जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी स्नान पूर्णिमा के बाद बीमार पड़ गए. जिसके बाद से मंदिर के पट 15 दिनों के लिए बंद कर दिए गए थे. यह विशेष काल “अनवसर” या “अनसर काल” कहलाता है. स्नान पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को 108 पवित्र जलघटों से स्नान कराया गया था, जिसके बाद ठंड लगने के कारण वे ज्वर (बुखार) से पीड़ित हो गए थे. इसके बाद ही विश्राम के लिए वे अपने निज मंदिर में थे.
नहीं लगता पकवानों का भोग
इस अवधि में भक्त भगवान के दर्शन से वंचित हो गए थे. ज्वर से पीड़ित होने के बाद 15 दिनों तक भगवान का उपचार चला. इस काल में केवल दैतापति सेवक ही भगवान की सेवा कर सकते हैं. 56 भोग पाने वाले महाप्रभु उपचार काल में केवल आयुर्वेदिक औषधियां, विशेष काढ़ा (दशमूल), पंचगव्य ग्रहण करते हैं. इस संपूर्ण प्रक्रिया को “निज उपचार” कहा जाता है. अब भगवान कल भक्तों को नवयौवन रूप में दर्शन देंगे.
भक्तों के बीच जाते हैं भगवान
बुखार ठीक होने के बाद तीनों भगवान मंदिर से बाहर निकलेंगे और विशालकाय रथों में सवार होकर मौसी गुंडिचा के घर जाएंगे. ये वो अवसर होता है जब भगवान साल में एक बार अपना रत्न सिंहासन छोड़कर श्रीमंदिर से बाहर निकलते हैं और अपना प्रजा का हाल जानते हैं. ये वो क्षण होता है जब भक्त भगवान के नहीं, भगवान भक्तों के दर्शन के लिए निकलते हैं. ये बहुत ही सुंदर भाव है जो भक्त और भगवान के बीच के प्रेम को दर्शाता है. इतना ही नहीं, अन्य मंदिरों में ऐसे अवसरों पर उत्सव प्रतिमा (चल विग्रह) को निकाला जाता है. लेकिन रथयात्रा में महाप्रभु जगन्नाथ समेत चतुर्थ विग्रह (श्री जगन्नाथ, स्वामी बलभद्र, देवी सुभद्रा, सुरदर्शन) के अचल विग्रहों को मंदिर के बाहर लाया जाता है.


तीन विशालकाय रथ
27 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकलेगी और गुंडीचा मंदिर तक जाएगी. इसमें भगवान को श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाने के लिए तीन विशालकाय रथ तैयार किए जाते हैं. जिसमें महाप्रभु जगन्नाथ, स्वामी बलभद्र, बहन सुभद्रा और सुदर्शन चक्र विराजित होते हैं. तीनों रथों के नाम भी होते हैं. जिसमें स्वामी बलभद्र का रथ तालध्वज, देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन (देवदलन) और महाप्रभु जगन्नाथ जी का रथ नंदीघोष (गरुड़ध्वज) कहलाता है. तीनों रथों की अपनी विशेषता होती है.
तालध्वज
भगवान बलराम के रथ की ऊंचाई 43.30 फीट होती है. इसमें 14 पहिए होते हैं. रथ का रंग लाल और हरा होता है. इस रथ के सारथी मातलि हैं. इस रथ के रक्षक वासुदेव हैं. रथ के ध्वज पर महादेवजी का प्रतीक होता है. यह रथ सबसे आगे चलता है.
दर्पदलन
देवी सुभद्रा के रथ की ऊंचाई करीब 41 फीट होती है. इसमें 12 पहिए लगे होते हैं. रथ का रंग लाल और काला होता है. जिसके सारथी अर्जुन हैं. रथ की रक्षिका जयदुर्गा देवी होती हैं. और सारथी अर्जुन होते हैं. ध्वज पर पद्म (कमल) का चीन्ह होता है. यह रथ बीच में चलता है.
नंदीघोष
महाप्रभु जगन्नाथ का रथ करीब 45 फीट ऊंचा होता है. इसमें 16 पहिए होते हैं. इस रथ का रंग लाल और पीला होता है. प्रभु जगन्नाथ के सारथी दारुक हैं. इस रथ के रक्षक भगवान नृसिंह और गरुड़ होते हैं. रथ के ध्वज में गरुड़ की आकृति होती है. वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार ध्वज में भगवान शिव के चंद्र की आकृति होती है. इस ध्वज को उन्नानी कहा जाता है. यह रथ सबसे पीछे चलता है.
छेरा पहरा की रस्म के साथ शुरू होती है यात्रा
रथ खींचने की शुरुआत छेरा पहरा के बाद होती है. भगवान के रथारूढ़ होने के बाद सर्वप्रथम शंकराचार्य जी पूजन करते हैं. इसके बाद परंपरा अनुसार पुरी के राजा गजतपति महराज प्रथम सेवक के रूप में छेरा पहरा की रस्म करते हैं. इसमें राजा सोने की हत्थे वाली झाड़ू से रथ के चारों ओर सफाई करते हैं. ये महान परंपरा इस बात का प्रतीक है कि भगवान के सामने कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. उनके सामने सब एक समान हैं. चाहे वो राजा हो या रंक. इस रस्म के बाद ही रथ खींचा जाता है.
5 जुलाई को श्रीमंदिर वापस लौटेंगे महाप्रभु
रथयात्रा के दौरान कई अन्य रस्में होती हैं. जिसमें 1 जुलाई को हेरा पंचमी की रस्म की जाएगी. 5 जुलाई को तीनों भगवान गुंडिचा मंदिर से वापस लौटेंगे. जिसे बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है. इसमं भगवान जगन्नाथ मुख्य मंदिर वापिस आएंगे, जहां उनका भव्य स्वागत किया जाएगा.
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