रायपुर।  जल-जंगल से भरा-पूरा प्रदेश छत्तीसगढ़ भी आज जलवायु परिवर्तन के बीच भीषण जल संकट से गुजरने लगा है. साल-दर-साल यह संकट तेजी से गहराते भी जा रहा है. क्योंकि अब गर्मी के आते ही नदियां सूख जा रही हैं, तालाब सूख जा रहे हैं. भू-जल स्तर नीचे गिरते जा रहा है. स्थिति ये है कि छत्तीसगढ़ के भीतर पहली बार ऐसा हुआ जब बस्तर का चित्रकोट जलप्रपात तक बे-धार हो गई. इंद्रावती हो या शिवनाथ, खारुन हो या अरपा या फिर छत्तीसगढ़ की आधार महानदी सभी अस्तिव की लड़ाइयां लड़ रही हैं.


सबसे पहले इन तस्वीरों को देखिए…अंदाजा लगाइएं हालात क्या से क्या होते जा रहा है. नदियां सूखती जा रही है, तालाब सूखते जा रहे हैं, जल संकट के भयानक खतरे के बीच अगर हम गैर-जिम्मेदार बनते गए तो नजारा अब इसी तरह दिखाई देगा. आपको जल स्त्रोतों को बचाने इसी तरह से आगे आना होगा. जैसे इन दिनों बस्तर के भीतर में इंद्रावती को बचाने लोगों पदयात्रा कर रहे हैं. इस जन-जागरण अभियान का असर पता नहीं कितना होगा लेकिन जो कुछ हो रहा वह संकेत है कि अब भी हम जल-जंगल को नहीं बचाए, बचाने आगे नहीं आए तो स्थिति एक दिन ऐसी आ जाएगी जहाँ सिर्फ नदिया या तालाब ही नहीं मरेगी, बल्कि हम सब मर जाएंगे.

ये यात्री तो इंद्रावती को बचाने निकले हैं. यह बताने के लिए निकले हैं कि सरकार जागिए. आपको सिर्फ निर्माणों कार्यों तक ही विकास को नहीं परिभाषित करना है बल्कि गहराते जल संकट से भी उबारना होगा. इसके लिए नदियों पर मंडारते अस्तिव के खतरे को समझना होगा. जिस तरह से नदियों पर एनीकेट बना-बना पानी बेचने काम हुआ उससे भी बड़ा खतरा नदियों पर मंडरा रहा है. नतीजा इन तस्वीरों को भी देख लीजिए.

बस्तर के जंगल के भीतर निवासरत् आदिवासी भीषण गर्मी में सबसे ज्यादा परेशान हैं. क्योंकि पहुँच विहिन गाँवों की सच्चाई ये है कि वे झरिया का पानी पीने मजबूर है या फिर उन्हें कोसो पैदल चल पानी लाना पड़ रहा है. आज छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की जीवन दायिनी अरपा मरी हुई नदी बन चुकी है. रायगढ़ में केलो मर चुकी है. कोरबा-जाँजगीर में हसदेव उद्योगपतियों के हिस्से में है. गरियाबंद में सोढ़ूर-पैरी बरसाती नदी बन चुकी है. रायपुर में खारुन तड़प-तड़प के मरने के कगार पर है. दुर्ग में शिवनाथ और धतमरी- राजिम-महासमुंद में महानदी पर बैराज और एनीकेट की मार से धार टूट गई है.

नदी तलाबों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं नदी घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंधोपाध्याय की टीम छत्तीसगढ़ की दर्जनों पर नदियों पर रिसर्च किया है. नदियों पर मंडराते संकट को लेकर जो कारण सामने आए हैं उन्में अवैध रेत उत्खनन, औद्योगिक घरानों से निकलने वाले केमिकल युक्त प्रदूषण, अधिक संख्या में बैराज और एनीकट का निर्माण, सरकार के पास कोई स्पष्ट जल नीति का न होना.


गौतम बंधोपाध्ये कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में नदियों पर संकट की शुरुआत सन 1998 में दुर्ग जिले में शिवनाथ नदी को एक औद्योगिक घराना ‘रेडियस वाटर’ को बेचने के साथ हुई. खारुन नदी में सिलतरा में स्थापित कई औद्योगिक घरानों का पानी स्टोर रहता है. इसके बाद कई और नदियों से लगातार औद्योगिक घरानों के लिए पानी देने की व्यवस्था की होते चली गई. आज स्थिति ये है कि छत्तीसगढ़ सरकार के पास कोई जल नीति नहीं है. लिहाजा बेहताशा नदियों में औद्योघिक घरानों को पानी देने एनीकेट और बैराज बनाए जा रहे हैं. हद तो ये हो गई है कि एनीकट निर्माण में न तो दूरी का ख्याल रखा जा रहा है और न ही ऊंचाई का.

इससे ये हो रहा है कि जगह-जगह पानी के प्रवाह को रोक दिया जा रहा है. नतीजा ये हुआ है जल में रहने वाले लाखों जीव-जंतुओं के अस्तिव पर भी खतरा मंडरा गया है. न जाने कितने ही जीव-जंतू तो समाप्त ही हो गए हैं. यह सिर्फ नदियों पर मंडारते अस्तिव का संकट ही नहीं बल्कि यह मानव जीवन के लिए भी खतरे की घंटी है. फिलहाल जो स्थिति बनती जा रही उससे यही संकेत मिल रहे हैं आने वाले कुछ वर्षों में प्रदेश में दर्जनों नदियां मर जाएंगी !