नारायणपुर. जिले के फरसगांव क्षेत्र में जल स्तर बढ़ाने और पानी की समस्या दूर करने किसान हित मे केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना अमृत सरोवर योजना अंतर्गत जल संसाधन विभाग द्वारा 5 तालाब निर्माण किये गये हैं. जहां अधिकारी ठेकेदार से मिलीभगत कर जमीन डकार गए. मामला उजागर होने पर जल संसाधन विभाग के अधिकारी ने कृषि विभाग द्वारा जमीन का चिन्हांकन कर दिया गया कहकर अपना बचाव कर लिया. वहीं कृषि विभाग के अधिकारी ने खुद का बचाव करते हुए जल संसाधन विभाग को घेरते हुए कहा कि विभाग को पहले देखना चाहिए था कहां खनन किया जाना है.

दरअसल, 5 तालाबों में हर तालाब की लागत लागभग 29 लाख रुपये है. वहीं ग्रमीणों का आरोप है कि तालाब निर्माण मानक और लागत के अनुरूप नहीं है. तालाब निर्माण में भारी कोताही बरतने के साथ ही जमकर भ्रष्टाचार किया गया है. इतना ही नहीं तालाब निर्माण करने के पहले जल संसाधन विभाग के अधिकारी कर्मचारी द्वारा ग्रामीणों से जमीन के बदले जमीन या मुआवजा देने की बात कहकर 6 ग्रामीणों के निजी पट्टे वाली जमीन पर तालाब खोद दिया.

तालाब निर्माण के महिनों बाद विभाग के कर्मचारी और अधिकारी जब गांव नहीं पहुंचे तब ग्रमीणों ने 4 सितंबर 2023 को जनदर्शन में नारायणपुर कलेक्टर से न्याय की गुहार लगाई. कलेक्टर के आश्वासन के बाद ग्रमीण खुशी-खुशी वापस अपने गांव लौट गए. कार्रवाई न होने पर ग्रमीणों ने 21 सितंबर 2023 को फरसगांव थाना और 22 सितंबर 2023 को बेनूर थाना में आवेदन दिया. जिसके बाद ग्रमीण 03 अक्टूबर 2023 को पुनः जनदर्शन में नारायणपुर कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के पास गुहार लगाने पहुंचे. इसके बाद भी ग्रमीणों ने नारायणपुर तहसीलदार के पास जमीन का सीमांकन करने की मांग लेकर पहुंचे. जिसके बाद तहसीलदार ने ग्रमीणों को पूरा दस्तावेज सौंपा.

पूरे मामले पर भाजपा नेता सचिन जैन ने मीडिया के माध्यम से जिला प्रशासन से 7 दिवस के भीतर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत कर उचित कार्रवाई की मांग की थी. इधर जल संसाधन विभाग के एसडीओ एमएस कुंजाम ने कहा तालाब खनन का कार्य कृषि विभाग को मिला था. शुरुआती तौर पर कृषि विभाग ने काम किया. बाद में कलेक्टर ने जल संसाधन विभाग को एजेंसी बनाया. जमीन चिन्हांकन का काम कृषि विभाग से हुआ है. तो वहीं कृषि विभाग के अधिकारी बाल सिंह बघेल ने जल संसाधन विभाग पर ही सारा ठिकरा फोड़ते हुए कहा कि जल संसाधन विभाग को तालाब खनन से पहले देखना चाहिए था कि कहां खनन किया जा रहा है और उनको गाइडलाइन के अनुसार कार्य और भुगतान किया जाना था.

दोनों ही विभाग की लापरवाही ने आदिवासी किसानों की 3.5 एकड़ जमीन डूबा दी. अब किसान जमीन के बदले जमीन या मुआवजा के लिए दर-दर भटक रहे हैं. लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है.