रायपुर. छत्तीसगढ़ के हास्य कवि पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का आज हार्टअटैक से निधन हो गया. रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांसें ली. उनके निधन की खबर से छत्तीसगढ़ समेत देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है.

सुरेंद्र दुबे कविताओं के एक भारतीय व्यंग्यवादी और लेखक थे, वह पेशे से एक आयुर्वेदिक चिकित्सक भी थे. सुरेन्द्र दुबे छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध हास्य कवियों में शुमार थे. वे छत्तीसगढ़ ही नहीं देश-विदेश में भी अपनी कविताओं से लोगों को हंसाते थे. वे अपनी पंक्तियों के जरिए लोगों को खुश कर देते थे. उन्होंने कोरोना काल में उदासी के माहौल को दूर करने के लिए एक कविता भी लिखी थी.

पढ़िए, कोरोना काल में लिखी डॉ. सुरेंद्र दुबे की ये रचना

हम हंसते हैं लोगों को हंसाते हैं इम्यूनिटी बढ़ाते हैं, चलिए एंटीबॉडी बनाते हैं, घिसे-पिटे चुटकलों में भी हंसो, कोरोना के आंकड़ों में मत फंसो, नदी के बाढ़ का धीरे-धीरे पानी घट जाता है, कुत्तों को भौंकने के लिए आदमी नहीं मिल रहे, चोरों को चोरी करने खाली घर नहीं मिल रहे, सुबह-शाम टहलने वाले अब कद्दू की तरह फूल रहे, स्कूल बंद हैं, बच्चे मां-बाप के सिर पर झूल रहे, दूध बादाम मुनक्कका विटामिन सी खाओ, कोरोना का दुखद समाचार मत सुनाओ, अब भी वक्त है तीसरी लहर में संभल जाओ हंसो-हंसाओ और एंटीबॉडी बनाओ.

2010 में भारत सरकार ने दिया था पद्मश्री पुरस्कार

सुरेंद्र दुबे का जन्म 8 जनवरी 1953 को छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में हुआ था. उन्होंने पांच किताबें लिखी हैं. वह कई मंचों और टेलीविजन शो पर भी प्रस्तुति दे चुके थे. उन्हें भारत सरकार ने 2010 में देश के चौथे उच्चतम भारतीय नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया था. नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसिएशन की ओर से शिकागो में पद्मश्री डॉ. सुरेन्द दुबे को छत्तीसगढ़ रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया था. बता दें कि अमेरिका में सुरेंद्र दुबे एक दर्जन से ज्यादा जगहों पर काव्य पाठ कर चुके थे.