नई दिल्ली। भारत में ज़्यादातर लोग ख़ुद को और अपने देश को धार्मिक तौर पर सहिष्णु मानते हैं, लेकिन वे अंतरधार्मिक शादियों को सही नहीं मानते. भारत के तमाम समुदाय के ज़्यादातर लोगों का मानना है कि ऐसी शादियों को रोकना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में है. इस बात का खुलासा अमेरिकी शोध संस्था प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में हुआ है.
प्यू रिसर्च सेंटर ने देश के 26 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए सर्वे में 17 भाषाएँ बोलने वाले 30,000 लोगों का साक्षात्कार किया. सर्वे में बहुत सी कही-अनकही बातें निकलकर सामने आई. सर्वे के मुताबिक, 67 फीसदी हिंदू, 80 फीसदी मुस्लिम, 59 फीसदी सिख और 66 फीसदी जैन समुदाय के लोगों का मानना है कि महिलाओं को अपने समुदाय से बाहर शादी करने से रोका जाना चाहिए.
वहीं जब बात पुरुषों की आती है तो लोग थोड़े नरम पड़ जाते हैं. 65 फीसदी हिंदू, 76 फीसदी मुस्लिम, 58 फीसदी सिख और 59 फीसदी जैनियों का मानना है कि पुरुषों को समुदाय से बाहर शादी से रोका जाना चाहिए.
हिन्दू, मुस्लिम, सिख और जैनियों के मुकाबले ईसाई और बौद्ध समुदाय अंतरधार्मिक मामले में ज्यादा स्वीकार्य पाया गया. 37 फीसदी ईसाइयों का मानना है कि महिलाओं को समुदाय के बाहर शादी करने से रोका जाना चाहिए, जबकि पुरुषों के बारे में ऐसा कहने वाले 35 फीसदी थे. बौद्धों में महिलाओं और पुरुषों के लिए यह आंकड़ा क्रमशः 46 फीसदी और 44 फीसदी था.
वहीं अंतर-जातीय विवाह का विरोध अंतर-धार्मिक विवाह की तुलना में थोड़ा ही कम था. सभी समुदायों के 62% पुरुषों और 64% महिलाओं ने कहा कि लोगों को उनकी जाति से बाहर शादी करने से रोकना बहुत जरूरी है.
सर्वे में शामिल बहुत कम भारतीयों ने कहा कि उन्होंने किसी ऐसे शख्स से शादी की है, जो मौजूदा समय में उनसे अलग धर्म का पालन करता है. लगभग सभी शादीशुदा लोगों (99%) ने कहा कि उनके पति या पत्नी उनका धर्म मानते हैं. इसमें हिंदू (99%), मुसलमान (98%), ईसाई (95%), सिख और बौद्ध (97%) शामिल हैं.