नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज स्पष्ट किया कि उसने दिल्ली सरकार को कभी भी राजधानी में गंभीर वायु प्रदूषण के संबंध में एक मामले की सुनवाई के दौरान स्कूलों को बंद करने के लिए नहीं कहा, बल्कि उनसे स्कूलों को फिर से खोलने पर केवल रुख में बदलाव के पीछे के कारणों के बारे में पूछा. मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि ”पता नहीं यह जानबूझकर है या नहीं. मीडिया में कुछ वर्गों ने प्रोजेक्ट करने की कोशिश की, हम खलनायक हैं .. हम स्कूलों को बंद करना चाहते हैं.”
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पीठ ने दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि सरकार ने अदालत को बताया कि वह स्कूलों को बंद कर रही है और घर से काम शुरू कर रही है और आज के समाचार पत्र देखे. सिंघवी ने कहा कि एक अखबार ने लिखा कि आपका लॉर्डशिप प्रशासन को संभालना चाहता है. पीठ ने जवाब दिया कि उन्होंने कभी भी उस अभिव्यक्ति का इस्तेमाल नहीं किया और मामले की सही ढंग से रिपोर्ट नहीं की गई. प्रधान न्यायाधीश ने सिंघवी से कहा कि आपके पास निंदा करने का अधिकार और स्वतंत्रता है. हम ऐसा नहीं कर सकते. हमने कहां कहा कि हम प्रशासन को संभालने में रुचि रखते हैं ?
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पीठ ने प्रेस की आजादी की ओर इशारा किया. सिंघवी ने जवाब दिया कि कोर्ट रिपोर्टिग राजनीतिक रिपोर्टिग से अलग है और कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए. प्रधान न्यायाधीश ने जवाब दिया कि वीडियो सुनवाई के बाद कोई नियंत्रण नहीं है. कौन क्या रिपोर्ट कर रहा है, आप नहीं जानते. शीर्ष अदालत ने गुरुवार को दिल्ली सरकार से कहा था कि “आपने वयस्कों के लिए वर्क फ्रॉम होम लागू किया है, इसलिए माता-पिता घर से काम करते हैं और बच्चों को स्कूल जाना पड़ता है. यह क्या है ?”
सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख किया साफ
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि दिल्ली सरकार ने कई दावे किए कि वे प्रदूषण को रोकने के लिए लॉकडाउन और अन्य उपाय करने को भी तैयार हैं, लेकिन सभी स्कूल खुले हैं और तीन साल और चार साल के बच्चे स्कूल जा रहे हैं, जब हवा गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) इतना खराब है. शीर्ष अदालत दिल्ली के 17 वर्षीय छात्र आदित्य दुबे द्वारा दिल्ली में गंभीर वायु प्रदूषण के बारे में चिंता जताने वाले एक मामले की सुनवाई कर रही थी.
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