कहीं अपशगुन, तो कहीं सौभाग्य मानी जाती हैं काली बिल्लियां

काली बिल्ली को आमतौर पर लोग इसे पसंद नहीं करते हैं या फिर डरते हैं. वैसे तो बिल्ली को कई लोग पालतू जानवर मानते हैं, लेकिन दूसरी बिल्लियों के मुकाबले काली बिल्ली बहुत ही कम पलती देखी जाती है

मध्य युग में काली बिल्लियों को अक्सर जादू टोने और बुराई से जोड़ा जाता था. ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि उन्हें अक्सर चुड़ैलों के परिचितों के रूप में देखा जाता था. यह भी माना जाता था कि काली बिल्लियां खुद चुड़ैलों में बदल सकती हैं.

खौफनाक छवि के बाद भी कई संस्कृतियों में इन्हें सौभाग्य माना जाता है. कुछ जगह माना जाता है कि उनके पास जादुई शक्तियां हैं. चूहों का शिकार करने के लिए बिल्लियों को ब्रिटिश जहाजों पर चढ़ने की खास इजाजत थी. नाविक काली बिल्ली को खास तौर से भाग्यशाली और सुरक्षित वापसी की रक्षा करने वाला भी मानते थे.

काली बिल्ली के रंग की वजह आनुवंशिक है. काले फर जीन के तीन प्रकार होते हैं, ठोस काला, भूरा और दालचीनी. वहीं रंग पैटर्न के साथ मिलकर काम करता है. तेज धूप के संपर्क में आने से बिल्ली के बालों में यूमेलानिन पिग्मेंट टूट सकता है, जिससे उसकी खोई हुई धारियां पहले जैसी दिखने लगती हैं.

वहीं इसकी एक और वजह पोषण संबंधी कमी भी हो सकती है. पहले इन बिल्लियों का पुराना रंग गहरा भूरा था. काली बिल्लियां दूसरी बिल्लियों से ज्यादा सेहतमंद रह सकती हैं. इसका एक खास कारण भी है.

वह जीन जिसके कारण बिल्ली के बाल काले हो जाते हैं, वह मानव रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़े जीन के समान आनुवंशिक परिवार में है. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इन बिल्लियों के रंग का संबंध छिपाने से कम और रोग प्रतिरोधक क्षमता से अधिक है.