कितने देशों से आते थे मुगलों के कपड़े, कहां होते थे डिजाइन?
कितने देशों से आते थे मुगलों के कपड़े, कहां होते थे डिजाइन?
मुगलों का रुतबा उनके कपड़ों में भी झलकता था. बादशाह हो या बेगम, इनके कपड़ों का कनेक्शन हिन्दुस्तान तक सीमित नहीं था.
मुगलों का रुतबा उनके कपड़ों में भी झलकता था. बादशाह हो या बेगम, इनके कपड़ों का कनेक्शन हिन्दुस्तान तक सीमित नहीं था.
मुगलों ने इसके लिए कर्खाना-ए-ख़ास की व्यवस्था की थी जिसका काम शाही परिवार के लिए कपड़ों को डिजाइन करना था.
मुगलों ने इसके लिए कर्खाना-ए-ख़ास की व्यवस्था की थी जिसका काम शाही परिवार के लिए कपड़ों को डिजाइन करना था.
मुगल साम्राज्य का फैशन स्थानीय भारतीय परंपरा और मध्य एशिया, फारस, तुर्की और यूरोप से आने वाले प्रभावों का मेल था.
मुगल साम्राज्य का फैशन स्थानीय भारतीय परंपरा और मध्य एशिया, फारस, तुर्की और यूरोप से आने वाले प्रभावों का मेल था.
बादशाहों और बेगमों के दरबारी लिबास, शादी-ब्याह के विशेष जोड़े और त्योहारों पर पहने जाने वाले भारी-भरकम कपड़े अक्सर बनारस के ही करघों पर बनते थे.
बादशाहों और बेगमों के दरबारी लिबास, शादी-ब्याह के विशेष जोड़े और त्योहारों पर पहने जाने वाले भारी-भरकम कपड़े अक्सर बनारस के ही करघों पर बनते थे.
गुजरात उस समय अंतरराष्ट्रीय व्यापार का बड़ा केन्द्र था. सूरत बंदरगाह से फारस, अरब और यूरोप तक कपड़ों की खेपें जाती थीं और वहीं से कई नए फैशन और कपड़े भारत में आते थे.
गुजरात उस समय अंतरराष्ट्रीय व्यापार का बड़ा केन्द्र था. सूरत बंदरगाह से फारस, अरब और यूरोप तक कपड़ों की खेपें जाती थीं और वहीं से कई नए फैशन और कपड़े भारत में आते थे.
मुगल दरबार के लिए उच्च क्वालिटी की सूती मलमल, जरी से सजी किनारियां और कलात्मक प्रिंट वाला कपड़ा नियमित रूप से बंगाल से आता था.
मुगल दरबार के लिए उच्च क्वालिटी की सूती मलमल, जरी से सजी किनारियां और कलात्मक प्रिंट वाला कपड़ा नियमित रूप से बंगाल से आता था.
लाहौर व आगरा में दर्जियों और कढ़ाई करने वालों की बड़ी बस्तियां थीं. यहां आयातित और स्थानीय दोनों तरह के कपड़ों पर शाही आदेश के अनुसार कढ़ाई, गोटा और सजावट की जाती थी.
लाहौर व आगरा में दर्जियों और कढ़ाई करने वालों की बड़ी बस्तियां थीं. यहां आयातित और स्थानीय दोनों तरह के कपड़ों पर शाही आदेश के अनुसार कढ़ाई, गोटा और सजावट की जाती थी.
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