Mirza Ghalib Top Sher: हर दिल की गहराई में उतरते हैं मिर्ज़ा ग़ालिब के ये बेहतरीन शेर

दशकों पहले एक शायर ने यह सवाल पूछा था, 'न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता'

इस सवाल का जवाब अभी तक दे पाना किसी के लिए मुमकिन नहीं हो सका.  हालांकि गालिब के शेर किसी सोने की असर्फी की कीमत और चमक से कम नहीं हैं.

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

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मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले 

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक