प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक और आध्यात्मिक मेले महाकुंभ में रोजाना करोड़ों लोग डुबकी लगाने के लिए आ रहे हैं.
55 दिन तक चलने वाले इस महा आयोजन में आने वाले लोगों का विश्वास होता है कि गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने से उनके सभी पाप धुल जाते हैं.
इस बार के महाकुंभ में 40 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है. पर यक्ष प्रश्न यह है कि इतने लोगों की गिनती कैसे होती है? इसका आधार क्या है?
आपको बता दें कि महाकुंभ में श्रद्धालुओं की गिनती का सिलसिला 1882 में शुरू हुआ था.
तब अंग्रेजों ने प्रमुख रास्तों पर बैरियर लगाकर और रेलवे टिकट बिक्री के आधार पर 10 लाख श्रद्धालुओं के महाकुंभ में पहुंचने का अनुमान लगाया था.
1906 के कुंभ में करीब 25 लाख लोग शामिल हुए थे. इसी तरह, 1918 के महाकुंभ में करीब 30 लाख लोगों ने संगम में डुबकी लगाई थी.
साल 2013 से पहले मेले में आने वाले लोगों की संख्या का अनुमान डीएम और एसएसपी की रिपोर्ट के आधार पर लगाया जाता था.
इसमें बसों, ट्रेनों और निजी वाहनों के आंकड़े शामिल होते थे, अखाड़ों से भी उनके भक्तों की जानकारी ली जाती थी.
जबकि, साल 2013 के कुंभ में पहली बार सांख्यिकीय तरीके का इस्तेमाल किया गया. इसमें स्नान के लिए जरूरी जगह और समय को आधार माना गया.
आंकड़ों के मुताबिक, एक व्यक्ति को स्नान के लिए 0.25 मीटर जगह और 15 मिनट का समय चाहिए. इस तरह, एक घंटे में एक घाट पर लगभग 12,500 लोग स्नान कर सकते हैं.
इस साल, प्रयागराज में 44 घाटों को स्नान के लिए तैयार किया गया है. अगर इन सभी घाटों पर 18 घंटे तक लगातार स्नान हो, तो भी प्रशासन की तरफ से दिए गए आंकड़ों से यह संख्या कम बैठती है.
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