प्रेमानंद महाराज ने बताया- मृत्युभोज में खाना चाहिए या नहीं !
मृत्युभोज को लेकर लोगों के मन में एक सवाल हमेशा बना रहता है कि मृत्यु भोज ग्रहण करना चाहिए या नहीं.
सनातन धर्म में अमृत भोज की परंपरा नहीं है. केवल समर्थ अनुसार ब्राह्मण को भोजन कराने और मृतक की आत्मा शांति के लिए दान की बात कही गई है.
प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में बताया है कि कब और किस स्थिति में मृत्यु भोज ग्रहण किया जा सकता है.
प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने जब पूछा- गुरुदेव संसार व्यवहार में इंसान के संबंधियों में किसी न किसी की मृत्यु होती ही रहती है ऐसे में मृत्यु भोज पाना चाहिए या नहीं?
इस पर प्रेमानंद महाराज कहते हैं- वैसे शास्त्रों में तो यह निषेध है लेकिन यहां ध्यान वाली बात यह है की मृत्युभोज कहां है.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं- अगर अपने घर में हो रहा है अपने किसी निजी के यहां हो रहा है उसमें फिर या नहीं चलेगा. यदि अपने निजी संबंधियों के परिवार में मृत्यु भोज हो रहा है जहां 100-50 लोग शामिल हो रहे तो उसमें जाना पड़ेगा.
प्रेमानंद महाराज ने कहा- हां थोड़ा किशमिश आदि खा लें. जहां मृत्यु भोज पाना है, वहां चुपचाप अपनी थाली डाल लें. मृत्युभोज में जो भी मिले ईश्वर का नाम लेकर उसे पा लेना चाहिए.