काशी के उस मंदिर की कहानी, जहां ना आरती होती है ना बजती है घंटी …

बनारस का ये मंदिर मणिकर्णिका घाट के पास दत्तात्रेय घाट पर है. यह मंदिर गंगा नदी के किनारे पर है

और साल में जब भी गंगा नदी का जल स्तर ज्यादा होता है तो यह मंदिर पानी में डूब जाता है.

यह मंदिर 300 साल पुराना है और यह मंदिर पीसा की मीनार की तरह झुका हुआ है.

इस मंदिर की खास बात ये है कि यह मंदिर इतना झुका होने के बाद और कई महीनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी वैसे ही खड़ा है.

इस मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था.

ऐसा कहा जाता है कि उनकी एक दासी रत्ना बाई ने मणिकर्णिका घाट के सामने शिव मंदिर बनवाने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद निर्माण के लिए उसने अहिल्या बाई से पैसे उधार लिए थे.

अहिल्या बाई मंदिर देख प्रसन्न थीं, लेकिन उन्होंने रत्ना बाई से कहा था कि वह इस मंदिर को अपना नाम न दे, लेकिन दासी ने उनकी बात नहीं मानी और मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रखा

इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन-पूजन हो पाएगी.

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