चुनाव आयोग का एक व्यावहारिक नियम है कि प्रत्येक मतदाता की बाएं हाथ की प्रथम/तर्जनी उंगली पर ही अमिट स्याही लगाई जानी चाहिए

ये नियम इसलिए है कि व्यावहारिक रूप से एक कॉमन पहचान हो सके. मतदान अधिकारियों और लोगों को एक समान पहचान चिन्ह उपलब्ध हो सके जिससे बोगस वोटिंग पर अंकुश लगाया जा सके.

यदि कोई व्यक्ति मतदान कर चुका है तो सिद्ध करने हेतु सबको मालूम होना चाहिए कि स्याही का निशान कहां देखना है.

परन्तु कुछ मामलों में इसके अपवाद भी हैं, मान लीजिए कि मतदाता अपनी तर्जनी उंगली किसी दुर्घटना में खो चुका है तो नियमानुसार बाएं हाथ की मध्यमा पर अमिट स्याही लगाई जाती है.

यदि मध्यमा उंगली भी ना हो तो अगले क्रम में कनिष्ठा, अनामिका, अंगुष्ठ पर निशान लगाया जाता है. यदि मतदाता बाएं हाथ से दिव्यांग हो तो यही क्रम दाहिने हाथ की तर्जनी से शुरू किया जाता है.

स्याही को नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी ऑफ इंडिया के रासायनिक फाॅर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है। इसका मुख्य रसायन सिल्वर नाइट्रेट है। बैंगनी रंग का यह केमिकल प्रकाश में आते ही रंग बदल लेता है और इसे मिटाया नहीं जा सकता। यह इंक मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कर्नाटका में बनती है

चुनाव के दौरान फर्जी मतदान रोकने में कारगर औजार के रुप में प्रयुक्त हाथ की उंगली के नाखून पर स्याही सबसे पहले मैसूर के महाराजा द्वारा वर्ष 1937 में स्थापित मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी ने बनायी थी.