धनतेरस के दिन क्यों की जाती है यमराज की पूजा?

प्राचीन काल में हेम नाम का एक राजा था, जिसकी कोई संतान नहीं थी. बहुत समय बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई.

जब उस बालक की कुंडली बनवाई तब ज्योतिष ने कहा कि इसकी शादी के दसवें दिन मृत्यु का योग है.

यह सुनकर राजा हेम ने पुत्र की शादी कभी न करने का निश्चय लिया और उसे एक ऐसे स्थान पर भेज दिया जहां कोई भी स्त्री न हो.

लेकिन नियति को कौन टाल सकता? घने जंगल में राजा के बेटे को एक सुंदर स्त्री मिली और दोनों को आपस में प्रेम हो गया. फिर दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया.

भविष्यवाणी के अनुसार विवाह के दसवें दिन यमदूत राजा के प्राण लेने पृथ्वीलोक आए. जब वे प्राण ले जा रहे थे तब उसकी पत्नी के रोने की आवाज सुनकर यमदूत का मन दुखी हो गया.

यमदूत जब प्राण लेकर यमराज के पास पहुंचे तो बेहद दुखी थे. यमराज ने कहा कि दुखी होना स्वाभाविक है लेकिन कर्तव्य के आगे कुछ नहीं होता.

ऐसे में यमदूत ने यमराज से पूछा, 'क्या इस अकाल मृत्यु को रोकने का कोई उपाय है?' तब यमराज ने कहा, 'अगर मनुष्य कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन

व्यक्ति संध्याकाल में अपने घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में दीपक जलाएगा तो उसके जीवन से अकाल मृत्यु का योग टल जाएगा..तब से धनतेरस के दिन यम पूजा का विधान है.

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