लखनऊ. पुलिस वालों के साथ अक्सर बेहद निगेटिव बातें और विशेषण जुड़े होते हैं. कोई उन्हें वर्दी वाला गुंडा कहता है तो कोई शैतान कोई कुछ तो कोई कुछ. अक्सर पुलिस के बारे में कुछ सुनने को मिलता है तो वो होती हैं उनके बारे में बेहद आलोचना भरी बातें और लांछन.
वर्दी वालों की इन बदनामियों के बीच कुछ ऐसे होनहार हैं जो चुपचाप ऐसा कुछ कर जाते हैं. जिसके बारे में पता चलते ही लोग बिना तारीफ किए नहीं रहते. बस, ऐसे ही हैं एक इंस्पेक्टर भारत भूषण तिवारी. वैसे तिवारी जी, यूपी पुलिस में इंस्पेक्टर हैं. जी हां, वही यूपी पुलिस जो अपने कारनामों के लिए बेहद बदनाम रही है. हर हफ्ते अपने कारनामे से लोगों के निशाने पर आती है वही यूपी पुलिस. तिवारी जी भी उसी पुलिस का एक हिस्सा हैं. बस तिवारी जी ने खामोशी से जो एक काम कर दिया उसने सबकी नजरों में इनको हीरो का दर्जा दे दिया.
दरअसल भारतभूषण तिवारी को अपनी सर्विस के दौरान एक ऐसे बच्चे शिव के बारे में पता चला जो कि एक ट्रेन एक्सीडेंट में अपने दोनों पांव गंवा चुका था. इतना ही नहीं उस दुर्घटना में उस बच्चे की मां की भी मौत हो गई थी. उस वक्त शिव की उम्र सिर्फ चार साल की थी. दरअसल कहानी कुछ यूं शुरु होती है कि तिवारी जी एक थाने में थानेदार के पद पर तैनात थे. उनको इलाके के लोगों ने बच्चों की एक खेल प्रतियोगिता के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया. जब वे बच्चों को पुरस्कार दे रहे थे तभी उनकी नजर पुरस्कार लेने आए शिव पर पड़ी जिसके दोनों पैर ही नहीं थे. इस घटना ने तिवारी जी के मन को झकझोरा. शायद वर्दी की मशरूफियत और काम का बोझ ऐसा था कि वे उस घटना को भूलने भी लगे थे कि एक दिन तिवारी जी गश्त पर जा रहे थे कि तभी उन्होंने देखा कि शिव अपने घर के बाहर बेहद तल्लीनता से पढ़ाई करने में लगा था. शिव ने उन्हें अपनी दिक्कत बताई कि चूंकि उसके दोनों पैर नहीं हैं और इसी वजह से वह फर्स्ट फ्लोर पर स्थित क्लास को अटेंड करने स्कूल नहीं जा पाता. तिवारी जी फौरन स्कूल पहुंचे और स्कूल मैनेजमेंट से रिक्वेस्ट की कि शिव की क्लास को ग्राउंड फ्लोर पर शिफ्ट कर दिया जाय ताकि वो अपनी पढ़ाई कर सके. स्कूल मैनेजमेंट ने तिवारी जी की बात मान ली और शिव की क्लास को ग्राउंड फ्लोर पर ट्रांसफर कर दिया. इतना ही नहीं स्कूल ने शिव की फीस भी माफ कर दी.
इसी बीच तिवारी जी का ट्रांसफर दूसरे जिले के लिए हो गया. तब उनको एहसास हुआ कि उनके बाद शिव का क्या होगा. उन्होंने फैसला लिया कि शिव को नई जिंदगी दिलाने के लिए जो भी बन पड़ेगा वे करेंगे. बस, तिवारी जी ने नजदीकी बीएचयू हास्पिटल में शिव के सारे टेस्ट कराए और उसके लिए दोनों पांवों में आर्टिफिशियल पैर लगवा दिए. बस फिर क्या था. शिव भी सारे बच्चों की तरह चलने खेलने और दौड़ने लगा. इस सबमें करीब डेढ़ लाख रुपये का खर्चा आया लेकिन तिवारी जी ने इसका जिक्र तक किसी से नहीं किया.
अपने इस बेहद भले काम की चर्चा होने पर बेहद संकोच में भारत भूषण तिवारी कहते हैं कि एक इंसान के तौर पर मेरा फर्ज था जिसे मैंने निभाया. मुझे बेहद संतुष्टि है कि मैं किसी बच्चे की जिंदगी बेहतर बना सका. वाकई में, हम तो यही कहेंगे, कमाल करते हो तिवारी जी. इतनी बड़ी बात और इतनी खामोशी से कर दी.