रायपुर. ढाई साल बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है जो गरीबी को खत्म करने की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने तय किया है कि अब भूमिहीन कृषकों को सीधे नगदी दी जाएगी.
भूपेश सरकार की ढाई साल पुरानी सरकार की ये तीसरी न्याय योजना होगी. सबसे पहले वे किसानों को धान के बदले 2500 रुपये देने के अपने चुनावी वादा को पूरा करने के लिए अंतर की राशि करीब 10 हज़ार रुपये प्रति एकड़ देने के लिए राजीव गांधी किसान न्याय योजना लेकर आए. इसके बाद भूपेश सरकार ने लोगों से गोबर 2 रुपये किलो की दर पर खऱीदना शुरु किया. इसे गोधन न्याय योजना का नाम दिया गया. अब सरकार तीसरी बार भूमिहीन मज़दूरों के लिए न्याय योजना के साथ आ रही है.
ये एक तरह से तीनों योजनाएं 2019 में कांग्रेस के तात्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी के दिए न्यूनतम इनकम गारंटी वाले आईडिया की देन है. 2019 में राहुल गांधी के आईडिया को भले ही जनता ने स्वीकार नहीं किया. लेकिन भूपेश बघेल ने उस आईडिया को लागू करके ये दिया कि इसके क्या फायदे जनता को हो सकते हैं.
सीधे नगदी देने के आइडिया की जरूरत और महत्ता को भूपेश बघेल खूब समझ रहे हैं. जनता को सीधे पैसे देने की एक के बाद एक बनाई गई उनकी योजनाओं से इस सोच के प्रति उनकी प्रतिबद्धता भी ज़ाहिर होती है. भूपेश बघेल सरकार ने केंद्र सरकार की हर रुकावट और राज्य के भाजपा नेताओं की घेरेबंदी के बाद भी न्याय योजनाओं को न सिर्फ जारी रखा बल्कि उसका विस्तार भी करते जा रहे हैं. पैसे देने में जब राज्य के पास संसाधनों की कमी आई तो भूपेश बघेल ने कर्ज लेकर भी इसे जारी रखा. इसका असर भी हुआ. लॉक डॉउन में राज्य में माली हालत देश की तरह पतली नहीं हुआ. इसके साथ ये भी दर्ज हो गया कि आज के हालात से लड़ने में सीधे नगदी देना कितना ज़रुरी है.
राज्य में सरकारी आंकडों के मुताबिक करीब 12 लाख भूमिहीन किसान हैं. जिन्हें सीधा इस योजना का फायदा मिलेगा. अनुमान के मुताबिक इससे राज्य की करीब 25 फीसदी जन तक इसका लाभ पहुंचेगा.
हालांकि इसका नाम क्या होगा, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है. इस योजना में भूमिहीन किसान को कितनी राशि मिलने वाली है. हर महीने मिलेगी या साल में इसे भी अभी नहीं बताया गया है. लेकिन ये इस बात पर निर्भर करेगा कि योजना में कितनी राशि दी जा रही है. राज्य सरकार बार-बार संसाधनों के कमी की बात करती है, राज्य सरकार केंद्र पर उसका हक नहीं देने की बात भी करती है तो ऐसी स्थिति में फिर सरकार कैसे इसके वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था करेगी, ये देखना होगा.
राहुल गांधी ने 2019 में प्रति परिवार 12 हज़ार रुपये महीने देने की बात की थी. जिसे दे पाना मौजूदा परिस्थितियों में तो राज्य सरकार के लिए कतई संभव नहीं दिखता. सरकार के पास एक सरल रास्ता ये है कि प्रति एकड़ 10 हज़ार की तरह प्रति परिवार 10 हज़ार सालाना दे दे. लेकिन इससे कोई व्यापक बदलाव नहीं आएगा. केवल सरकार का प्रचार हो जाएगा.
लेकिन अगर ये राशि 30 या 40 हज़ार रुपये हो तो ये ऐतिहासिक फैसला साबित हो सकता है. राज्य सरकार को इससे सालाना करीब 4800 करोड़ का अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ेगा. यानि राजीव गांधी किसान न्याय योजना के बराबर का खर्च. सरकार के पास एक चारा है कि फिलहाल इसे शुरु करे और साल दर साल इसकी राशि में इजाफा करते चले जाए. लेकिन बाद के दोनों विकल्प गरीबी हटाने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर निर्भर करता है.
ये योजना पूर्व की न्याय योजनाओं से इस मायने में अधिक महत्वपूर्ण है कि इसके लाभार्थी राज्य की सबसे गरीब जनता है. भूपेश सरकार की राजीव गांधी किसान न्याय योजना से ज़्यादा लाभ उन किसानों को ज़्यादा मिला जिनके पास बड़े जोत थे. गोधन न्याय योजना के बारे में सरकार कहती है कि इससे राज्य की गरीब जनता सर्वाधिक लाभांवित हो रही है. लेकिन ये प्रमाणिक तथ्य नहीं है.
ये योजना पूरे राज्य में लागू नहीं है. ये योजना वहीं संचालित हो रही जहां सरकारी गौठानों का निर्माण हो चुका है, यानि अभी राज्य के करीब 6000 पंचायतों और नगरीय निकायों तक ही इसकी पहुंच है. दूसरी बात कि ये वर्ग लक्षित योजना नहीं है. जिससे निर्धारित हो सके कि योजना से लाभ किसी ख़ास आर्थिक या सामाजिक तबके को ही हो रहा है. एक तरफ इस योजना से अत्यंत गरीब लोग लाभार्थित हो रहे हैं तो दूसरी तरफ गायों को पालने वाल लोगों को भी इसका लाभ मिल रहा है.
लेकिन भूपेश बघेल सरकार की तीसरी योजना वर्ग लक्षित है. इस योजना से समाज के खेती के कार्य में जुड़े सबसे गरीब तबके के लोग लाभाविंत होंगे. इस योजना का एक फायदा ये भी हो सकता है कि मज़दूरी के लिए पलायन करने वाले लोगों की संख्या में कमी आ सकती है. माना जाता है कि बिलासपुर और रायपुर संभाग से दिल्ली, पंजाब, यूपी समेत दूसरे राज्यों में जाने वाले सर्वाधिक लोग भूमिहीन किसान ही होते हैं. इनके पलायन की संख्या में कितनी कमी आएगी, ये इस बात पर निर्भर करता है कि भूमिहीन मज़दूरों के न्याय योजना में प्रति परिवार भूपेश बघेल कितनी राशि देते हैं. अगर राशि ठीक-ठाक मिली तो पलायन में भारी कमी आ सकती है.
भूपेश बघेल के न्याय के तीनों सस्करणों के चलते आने वाले दिनों में गरीबों को सीधे पैसे देने की मांग ज़ोर पकड़ेगी और कई राज्यों और पार्टियों की राजनीति ओर मुडे़गी.
दरअसल, पूंजी का केंद्रीकरण दुनिया की सबसे बड़ी समस्या के रुप में पुख्ता तौर पर दर्ज होती जा रही है. इसे बढ़ती गरीबी के प्रमुख कारणों में गिना जाता है. अमेरिका से लेकर ब्रिटेन के चुनावों में ये ज्वलंत मुद्दा रहा है. अमेरिका में प्रति घंटे न्यूनतम मज़दूरी 15 डॉलर करने की मांग काफी समय से चल रही है. पूंजी के केंद्रीकरण से लोगों के खर्च करने की क्षमता भी सिकुड़ रही है. हाल में दुनिया के कई बड़े अर्थशास्त्रियों ने इस लिए गरीबों को सीधे कैश ट्रांसफर का सुझाव दिया.
हालांकि, बहुत ज़्यादा उम्मीद लगाने की बजाय इस योजना के मसौदे का इतंज़ार करना होगा उसके बाद ही बहुत सारी बातें समझ में आएगी.