दिल्ली. नीतीश कुमार फिर भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए में जाएंगे या नहीं. इसको लेकर फिलहाल असमंजस बना हुआ है. लेकिन जिस तरह से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की और परिवारवाद पर हमला किया है. उसे नीतीश कुमार की ऐसी ‘गुगली’ माना जा रहा है जिसे लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही हतप्रभ हो गई है.

दोनों ही यह नहीं समझ पा रहे हैं कि नीतीश कुमार के इस कदम का क्या संकेत है. यह माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने एक तरफ प्रधानमंत्री की प्रशंसा और दूसरी तरफ परिवारवाद पर हमला कर अपनी भविष्य की राजनीति को सुरक्षित रखने का कदम उठाया है.

 नीतीश कुमार संभवतः आम चुनाव के बाद अपने और जदयू के लिए सभी रास्ते खुले रखना चाहते हैं. उनको यह अंदेशा लग रह रहा है कि आम चुनाव में शायद इंडिया गठबंधन बहुत बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए. इसकी वजह यह है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, पंजाब में आम आदमी पार्टी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी पहले ही कड़े तेवर दिखा रही है. इन दलों ने कहा है कि वह अकेले ही चुनाव लड़ना चाहते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार को यह लगता है कि अगर वह बिहार में र में गठबंधन में चुनाव लड़ते हैं तो उनके सांसदों की संख्या और कम हो सकती है.

भाजपा के व्यवहार में नरमी

इस संभावना को देखते हुए उन्होंने अपने लिए सभी मार्ग खुला रखने का सीधा संकेत दिया है. यह कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार को यह उम्मीद है कि उनके इस संकेत के बाद भाजपा के व्यवहार में नरमी आ सकती है. जिसका संकेत भी मिलना शुरू हो गया है. भाजपा के कई नेता यह कह चुके हैं कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में बेचैन हैं. वह राजद के साथ सरकार चलाने में भी असहज हैं. हालांकि नीतीश कुमार के भाजपा संग  लौटने की राह में एक बड़ा ब्रेकर मुख्यमंत्री पद को लेकर है. भाजपा के कई नेता यह कह चुके हैं कि अगर नीतीश कुमार बिना मुख्यमंत्री पद के भाजपा गठबंधन में आना चाहते हैं. उस स्थिति में व वह भाजपा के साथ आ सकते हैं. लेकिन यह माना जा रहा है कि यह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का निर्णय नहीं है. भाजपा यह जानती है कि उसे बिहार में सत्ता हासिल करने के लिए नीतीश कुमार जैसे किसी कदद्भावर नेता की जरूरत होगी.