सत्या राजपूत, रायपुर। जब अधिकारियों का ध्यान मूल काम में न रहकर ध्यान धन में लग जाता है. तो उसका परिणाम का क्या-क्या प्रभाव पड़ता है. यह छत्तीसगढ़ के शिक्षा प्रणाली में देखने को मिल रहा है. जो प्राचार्य स्कूल नहीं संभाल पाते थे वो प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी का पद संभाल रहे हैं. प्रदेश के 33 जिलों में से 30 जिलों में फूल फ्लैश शिक्षा अधिकारी नहीं है, केवल 3 में ही फूल फ्लैश शिक्षा अधिकारी हैं. जो कि शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर खतरे की घंटी बजा रहा है. वहीं पालक और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ये समझी रणनीति है. जिसकी वजह से रणनीतिकार का जेब तो भर रहा है लेकिन बच्चों का भविष्य दांव में लग गया है.
वहीं अमलीजामा पहनाने वाले अपनी जेब भरने में मस्त होते हैं. तो इधर शिक्षा विभाग में लगातार की जा रही कार्रवाई है. हाल में ख़रीदी बिक्री में भ्रष्टाचार करने वाले तीन प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है. जिसमें बीजापुर के तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी प्रमोद ठाकुर, मुंगेली के जिला शिक्षा अधिकारी GP भारद्वाज और सूरजपुर के तत्कालिक जिला शिक्षा अधिकारी विनोद राय को निलंबित किया गया है.
33 में 3 ही साबुत
छत्तीसगढ़ में 33 जिला है, सभी जिलों में शिक्षा विभाग की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय हैं लेकिन प्रावधान अनुरूप ही जिन अधिकारियों को जिम्मेदारी देनी चाहिए वो छत्तीसगढ़ में है ही नहीं या फिर दूसरा माजरा है. इसके पीछे का एक कारण तो स्पष्ट है कि कई सालों से प्रोमोशन नहीं हुआ है. ये प्रोमोशन आखिर क्यों नहीं हुआ ये तो अधिकारी ही बता सकते हैं. लेकिन विभाग में जो सालों से दिख रहा है कि वरिष्ठ प्राचार्यों को छोड़कर जूनियर प्राचार्यों को प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी बनाया जाता रहा है. अगर वर्तमान की बात करें को 33 जिलों में से तीन जिलों में नियमानुसार फूल फ्लैश जिला शिक्षा अधिकारी है बाकी 30 जिलों में जूनियर प्राचार्यों को प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी बनाया गया है जो प्रभार संभाल रहे हैं.
लेन-देन में फोकस, शिक्षा डी फोकस
विद्यार्थियों के पालकों का यह आरोप है कि प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी शिक्षा कार्यों को छोड़कर यहां से कैसे भ्रष्टाचार करें और अपनी जेब भरें इसमें जुटे रहते हैं. हम लगातार देख रहे हैं कि भ्रष्टाचार के आरोप पर शिक्षा विभाग के जिला शिक्षा अधिकारियों पर कार्रवाई की जा रही है. ऐसे में कैसे शिक्षा का स्तर ऊंचा उठेगा.
सुधार की आस में फिर रहा पानी !
जैसे पिछली सरकार में हुआ है वहीं अब भी जारी है. वर्तमान सरकार से उम्मीद है कि शिक्षा में कोई खिलवाड़ नहीं होगा ? योग्य व्यक्ति को सही जिम्मेदारी दी जाएगी ? लेकिन अभी तक ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला है.
क्या सोचते हैं शिक्षाविद ?
शिक्षा से जुड़े लोगों का कहना है कि ये किसी रैकेट से कम नहीं हैं ये सोची समझी रणनीति है. क्योंकि करप्शन करने वाले करप्शन कर रहे हैं और दिखावा के लिए निलंबन की कार्रवाई की जाती है. लेकिन आगे और कार्रवाई होनी चाहिए वो नहीं होती है. शिक्षा और विद्यार्थियों से ध्यान हटाकर जिम्मेदार धन में ध्यान लगा रहे हैं तो शिक्षा में कैसे सुधार आएगी ? इसलिए सरकार से उम्मीद है कि इसमें कसावट लाए, भ्रष्टाचार करने वालों को जेल तक पहुंचाया जाए.
निलंबन की कार्रवाई पर्याप्त नहीं
भ्रष्टाचारियों को कहीं न कहीं विभागीय संरक्षण मिला होता है इसलिए समय पर न फाइल प्रस्तुत होता है ना ही FIR दर्ज होती है. हद की सिमा तब पार हो जाती है जब निलंबित अधिकारियों को आवश्यक काम बताकर बहाल कर दिया जाता है. शिक्षा विभाग में ऐसे कई मामले हैं. आरंग ब्लॉक शिक्षा अधिकारी एनपी कुर्रे जिसका गवाह है. इस अधिकारी पर कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे विभागीय जांच पर आरोप सही पाए गए और भ्रष्टाचार सिद्ध हुआ. भ्रष्टाचार को आधार बनाकर शिक्षा विभाग ने उसे निलंबित किया. लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि शिक्षा विभाग ही विभागीय आवश्यकता बताकर महज 24 घंटे के भीतर ही बहाल कर दिया था.
पिछली सरकार में नहीं हुआ प्रोमोशन
सामान्य प्रशासन विभाग की गाइडलाइन के अनुसार जिला शिक्षा अधिकारी के पद के लिए योग्यता निर्धारित है. लेकिन शिक्षा विभाग के पास निर्धारित योग्यता के अनुसार अधिकारी नहीं है. इसके पीछे का कारण प्रमोशन का नहीं होना बताया जा रहा है.
इस मसले को लेकर जब लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने विभागीय सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी को कॉल किया तो उनकी ओर से कोई रिप्लाई नहीं आया है.
प्रदेश के 33 जिलों के शिक्षा अधिकारियों की लिस्ट
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