सनातन परंपरा में सुगंध को दिव्यता से जोड़कर देखा गया है. पूजा में धूप, अगरबत्ती और कपूर का प्रयोग केवल वातावरण को महकाने के लिए नहीं, बल्कि देवताओं की ऊर्जा से जुड़ने और वातावरण को शुद्ध करने के लिए किया जाता है. हर पूजा में एक ही सुगंध प्रयोग करने की बजाय, देवता, समय और उद्देश्य के अनुसार सही चयन करने से आध्यात्मिक ऊर्जा कई गुना बढ़ती है. सुगंध का यह विज्ञान घर को मंदिर और मन को ध्यान बना देता है.

धूप
तप की सुगंध, ऋषि परंपरा का संकेत है. इसे गोंद, लोबान, चंदन या गुग्गुल से तैयार किया जाता है. इसका धुआं नकारात्मक ऊर्जा और भय को हटाता है. यह शिव, शनिदेव, भैरव और दुर्गा को प्रिय होता है.
उपयोग का समय: प्रातः और संध्या आरती में, विशेष रूप से मंगलवार, शनिवार को
अगरबत्ती
मन की शांति और ध्यान केंद्रित करने के लिए सुगंधित अगरबत्ती होती है. इसमें गुलाब, चंपा, चमेली, चंदन जैसी सुगंध होती है. यह लक्ष्मी, विष्णु, कृष्ण और राधा को प्रिय होती है.
उपयोग समय: प्रातःकालीन पूजा, ध्यान या भजन के समय. यह मन को स्थिर और वातावरण को मधुर बनाती है.
कपूर
आत्मशुद्धि और बलिदान का प्रतीक होता है. कपूर जलने के बाद पीछे कुछ नहीं छोड़ता – नश्वरता और समर्पण का प्रतीक. यह हनुमान, शिव और देवी लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय है.
उपयोग समय: आरती के अंत में, विशेष रूप से रात में इससे भूत-प्रेत बाधाएं, नज़र दोष और मानसिक तनाव दूर होते हैं.
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