सुधीर दंडोतिया, भोपाल। हाल ही में सागर इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव के दौरान पूर्व मंत्री और खुरई से सीनियर विधायक भूपेंद्र सिंह की नाराजगी की बातें सामने आ रही थी। कहा जा रहा था कि उन्हें मंच पर उचित जगह नहीं दी गई और उपेक्षा की गई। सीएम के दाएं-बाएं 9वें नंबर की कुर्सियों पर बैठाया गया था। जिससे नाराज होकर उन्होंने अपनी कुर्सी लगवाने के लिए प्रयास किए। इस बीच उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट कर बयान जारी किया और लिखा कि ऐसी ख़बरों से मन व्यथित हो गया। 

मन व्यथित हुआ

पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने फेसबुक पर पोस्ट कर लिखा, आज एक समाचार पत्र में इस आशय की पंक्तियां पढ़ कर मन व्यथित हुआ जिसमें लिखा गया है कि सागर इन्वेस्टर्स कान्क्लेव के मंच पर अपनी कुर्सी लगवाने के लिए मैंने प्रयास किए या बैठक व्यवस्था से मुझे एतराज था।

संघ और भाजपा मेरे खून में
उन्होंने आगे लिखा, संघ और भाजपा मेरे खून में है और इनके अनुशासन का अनुसरण सदैव मैंने किया है। जिसके लिए विगत 45 वर्षों से मैं कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा हूं। इन 45 वर्षों में से लगभग 25 वर्ष ऐसे संघर्षों से भरे थे जिनमें कांग्रेस की सरकार थी। उस समय जनसमस्याओं को लेकर आंदोलनों में पुलिस की लाठियां खाईं, अनेक बार जेलों की यातनाएं सही लेकिन संघर्ष का मार्ग नहीं छोड़ा और न ही विचारधारा से समझौता किया।

छात्र जीवन से ही दरी बिछाने, दीवाल लेखन किया

उन्होंने लिखा, कांग्रेस के सत्ता काल में अपनी पार्टी के लिए छात्र जीवन से ही दरी बिछाने, दीवाल लेखन करने, सड़कों पर जनसमस्याओं को लेकर आंदोलन करने पर बिना किसी अपराध के जेल काटीं। तब अनेक दिन ऐसे थे जब जेलों में खाना नहीं मिला, कड़ाके की सर्दियों में दरी और कंबल भी नहीं मिले और जेल के ठंडे फर्श पर बैठे-बैठे ही रातें गुजारीं। तब युवावस्था थी जब कांग्रेस सरकार ने मुझे प्रताड़ित करने के लिए एक वर्ष तक लगातार जेल में रखा और इस दौरान 7 बार जेलें बदलीं पर मैं झुका नहीं। पुलिस ने पीटा, दर्जनों झूठे मुकदमे लगाए।

मेरे पिता पर कांग्रेस में जाने का दबाव बनाया गया

विधायक ने लिखा, मुझे स्मरण आता है कि मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी के सागर आगमन पर छात्र आंदोलन हुआ तब उसमें सक्रिय हिस्सा लेने के प्रतिशोध में हमारे परिवार की बहुत सारी बेशकीमती जमीनों के अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू कर दी गई थी। मेरे पूज्य पिता और मुझ पर दबाव डाला गया कि कांग्रेस पार्टी में आ जाएं तो कुर्सी मिलेगी और जमीन का अधिग्रहण भी नहीं होगा। लेकिन हमने कीमती जमीनों का सरकारी दरों पर अधिग्रहण हो जाने दिया लेकिन विचारधारा त्याग कर कांग्रेस में जाने और कुर्सियां लेने के प्रस्ताव को ठोकर मार दी। हजार करोड़ रुपए से अधिक कीमत की हमारी जमीन पर हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनियां बना दी गईं। 

कुर्सियों का मोह तब नहीं किया तो अब मोह और समझौते क्या करेंगे

पर आज मैं गर्व और गौरव से कह सकता हूं कि 45 वर्षों से राजनीति में होने और विपरीत समय में प्रताड़ना सहने के बाद भी मेरे भरे पूरे परिवार के एक भी सदस्य ने कुर्सी के मोह में भाजपा के अलावा किसी और पार्टी या विचारधारा को अपने जीवन में स्थान नहीं दिया। किसी सदस्य ने कांग्रेस में जाने का कभी विचार भी मन में नहीं आने दिया। संघ और भाजपा के प्रति यही वैचारिक दृढ़ता और अनुशासन आज हमारी सर्वश्रेष्ठ पूंजी है। कुर्सियों का मोह हमने तब नहीं किया तो अब कुर्सियों के लिए मोह और समझौते क्या करेंगे! कुर्सियों की चाह मन में होती तो सारे संघर्ष और जेलों की यातनाएं क्यों सही होतीं ?

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