18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू हो गया है. एनडीए के 293 सांसद एक ओर बैठते नजर आए, जबकि विपक्ष इंडिया गठबंधन के बैनर तले संगठित और मजबूत भूमिका में दिखाई दिया. इंडिया ब्लॉक के 20 सहयोगी दलों के 234 सांसद चुने गए, लेकिन 3 निर्दलीय सांसदों के समर्थन से इनकी संख्या 237 हो गई है. इस तरह सरकार और विपक्षी गठबंधन के बीच 56 सीटों का अंतर है.

 एनडीए के साथ नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे धुरंधर नेता भी शामिल हैं, जिनके 28 सांसदों के चलते भाजपा के लिए सदन चलाना आसान नहीं होगा.

बीजेडी, बीआरएस, बीएसपी, एआईएडीएमके, और वाईएसआरसीपी की स्थिति

बीजू जनता दल, जो कई बार मोदी सरकार के लिए संसद में मददगार रही, इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के ही हाथों साफ हो गई है. उनके एक भी उम्मीदवार लोकसभा नहीं पहुंच सके. वाईएसआरसीपी, जिसने अनुच्छेद 370, सीएए, कृषि कानून जैसे विवादित मुद्दों पर भाजपा का समर्थन किया था, इस चुनाव में भाजपा के गठबंधन से हार गई है.

जगन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी के पास न तो इतना राजनीतिक वजन है कि वह संख्या बल को बहुत अधिक प्रभावित कर सके, और न ही वे भाजपा का समर्थन करने से बचेंगे क्योंकि यह उनकी घरेलू राजनीति के लिए सही नहीं होगा. भारत राष्ट्र समिति, बहुजन समाज पार्टी, और एआईएडीएमके जैसी पार्टियां, जो कभी-कभी भाजपा के लिए थोड़ी नरम रहीं, इस बार लोकसभा से पूरी तरह गायब हैं.

एनडीए और इंडिया गठबंधन से दूर 13 सांसदों की भूमिका

जो सांसद न तो सरकार के साथ हैं और न ही इंडिया गठबंधन के, ऐसे 13 सांसद हैं. इनमें 4 आंध्र प्रदेश, 3 पंजाब, 2 उत्तर पूर्व और 1-1 जम्मू कश्मीर, लद्दाख, बिहार और तेलंगाना से चुने गए हैं. जब सत्ता पक्ष और विपक्ष का आंकड़ा इतना करीब हो तो ये सांसद किसी विवादित विधेयक को पारित करते समय लोकसभा में महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

इनमें से ज्यादातर सांसदों की राजनीतिक पृष्ठभूमि और झुकाव को देखते हुए, भाजपा इनके समर्थन से कुछ मामलों में बच सकती है और कुछ मामलों में समर्थन पाना संभव भी नहीं होगा. इनमें से 7 सांसद सीधे तौर पर एनडीए के प्रत्याशी को हराकर लोकसभा पहुंचे हैं. वहीं जिन 5 ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को हराया है, उनकी सीटों पर भाजपा के लिए माहौल ठीक नहीं रहा है. ऐसे में यहां के सांसद भी भाजपा को समर्थन देने से बचेंगे.

वाईएसआरसीपी के 4 सांसद क्यों दूरी बनाए रख सकते हैं?

वाईएसआरसीपी के 4 सांसदों का समर्थन लेना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि वे आंध्र प्रदेश की राजनीति में वाईएसआरसीपी की धुर विरोधी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ गठबंधन में है. वाईएसआरसीपी ने चुनाव के दौरान आंध्र प्रदेश में हुई हिंसा को लेकर टीडीपी पर आरोप लगाए थे. ऐसे में, टीडीपी के समर्थन से सरकार चला रही भाजपा के लिए वाईएसआरसीपी से दूरी बनाए रखना ही फायदे का सौदा होगा.

निर्दलीय सभी सांसद भाजपा का विरोध करेंगे?

इस लोकसभा चुनाव में कुल 7 सांसद निर्दलीय चुने गए. इनमें से 3 ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया है. पप्पू यादव, विशाल पाटिल और मोहम्मद हनीफा ने विपक्ष की तरफ से बैटिंग करने की बात की है. मगर पंजाब की खदूर साहिब सीट से नवनिर्वाचित सांसद अमृतपाल सिंह और फरीदकोट से सांसद सरबजीत सिंह खालसा को लेकर चीजें स्पष्ट नहीं हैं.

जम्मू कश्मीर की बारामूला सीट से पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हराने वाले अब्दुल राशिद शेख उर्फ इंजीनियर राशिद का लगभग तय है कि वह भाजपा की लाइन के खिलाफ ही रहेंगे. इंजीनियर राशिद जम्मू कश्मीर टेरर फंडिंग मामले में गिरफ्तार हैं और फिलहाल जेल में हैं.

दमन-दीव से निर्दलीय सांसद उमेश भाई पटेल से भाजपा अपने समर्थन में वोट की अपील कर सकती है, लेकिन उमेश भाई पटेल के लिए भाजपा का समर्थन कठिन होगा क्योंकि उनकी अधिकतर राजनीति भाजपा के खिलाफ रही है.

अन्य – ओवैसी, बादल, आजाद और उत्तर पूर्व के सांसद

हैदराबाद से चुने गए असदुद्दीन ओवैसी भाजपा और मोदी सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं, इसलिए भाजपा के लिए यहां कोई गुंजाइश नहीं होगी. चंद्रशेखर आजाद भी भाजपा को समर्थन नहीं देंगे. मेघालय की वॉइस ऑफ द पीपल पार्टी के रिक्की सिंग्कोन और मिजोरम से जोरम पीपल्स मूवमेंट के रिचर्ड वनलाल्हमंगाइहा भी भाजपा को समर्थन देने से बचेंगे. शिरोमणि अकाली दल से इकलौती सांसद हरसिमरत कौर बादल से भाजपा को कुछ उम्मीद हो सकती है, लेकिन यह भी बहुत संभव नहीं दिखता.

इस प्रकार, एनडीए और इंडिया गठबंधन से दूरी बनाए रखने वाले 13 सांसदों में से लगभग 12 ऐसे हैं जिनके समर्थन की गुंजाइश भाजपा के लिए कम है.