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रायपुर. प्रदेश की सर्द फिज़ा में बेरोज़गारी दर का आंकड़ा पिछले कुछ दिनों से सियासी गरमी पैदा किए हुए है. भारतीय अर्थव्यवस्था की अलग-अलग पहलूओं से अध्ययन करने वाली संस्था सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने अपनी हालिया रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में बेरोज़गारी की दर को 2.1 फीसदी को बताया है, जबकि देश में बेरोज़गारी की दर 7.9 फीसदी है.
सरकार का कहना है कि सितंबर 2018 में जब बीजेपी के पास सत्ता थी, तब ये दर करीब 22 फीसदी के आसपास था, जबकि बीजेपी इसे आंकड़ों की बाज़ीगरी बता रही है. दो मंत्री रविंद्र चौबे और शिव डहरिया ने बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आंकड़ों का पूरा ब्यौरा सामने रखा.
वहीं पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मांग कर डाली कि इस मसले पर सरकार श्वेत पत्र जारी करे. रमन सिंह ने एक दूसरा आंकड़ा जारी करके आंकड़ों पर सवाल उठा दिए. इस पर रविंद्र चौबे ने बीजेपी नेताओं से पूछा कि क्या वे CMIE के आंकड़ों को झूठा कहना चाहते हैं. अगर CMIE के आंकड़े सही हैं तो छत्तीसगढ़ में रोजगार के आंकड़े कैसे गलत हो सकते हैं.
इस सियासी बयानबाजी से अलग समाजिक और आर्थिक परिवर्तन की नब्ज़ पर हाथ रखने वाले जानकार इसे दूसरे नज़रिये से परख रहे हैं. अर्थशास्त्री डॉक्टर रविंद्र ब्रम्हे का कहना है कि सीएमईआई बहुत अच्छा अध्ययन करता है. ये साइंटिफिक मेथड से अध्ययन करती है, जिस पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. उनका मानना है कि बेरोज़गारी कम हुई है.
डॉक्टर ब्रम्हे आगे इसकी वजह बताते हैं कि मनरेगा में छत्तीसगढ़ ने खूब जॉब दिए हैं. वे सरकार द्वारा पांच लाख लोग को नौकरी देने के दावे को अच्छा मानते हैं. वे कहते हैं कि ये गुड क्वालिटी जॉब है, जिसमें लोगों को हर महीने सुरक्षित आय मिलते हैं. वे कहते हैं कि ज़्यादातर रोज़गार कृषि और असंगठित क्षेत्र है.
हालांकि वे 2018 में बेरोज़गारी की दर 22 फीसदी रहने की वजह राज्य को नहीं मानते हैं. वे कहते हैं कि उस साल बेरोज़गारी दर के आंकड़े जारी नहीं हुए थे, क्योंकि 2018 में 45 साल में बेरोज़गारी दर सबसे ज़्यादा थी. छत्तीसगढ़ में उसी का असर रहा होगा.
डॉक्टर ब्रम्हे रिपोर्ट में कुछ और दिलचस्प बातें छत्तीसगढ़ के सदंर्भ में देखते हैं. डॉक्टर ब्रम्हे कहते हैं कि रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के बारे में कई और पॉजिटिव बातें बोल रही हैं. वे कहते हैं कि छत्तसीगढ़ में अपेक्षाकृत ज़्यादा श्रमिक हैं. उसके बाद भी ज़्यादा लोगों को यहां रोज़गार मिल रहा है. दूसरी बात जो रिपोर्ट में अच्छी दिखती है वो ये है कि दूसरे राज्यों में शहरी क्षेत्रों में ज़्यादा बेरोज़गारी है जबकि राज्य में ग्रामीण और शहरी दोनों जगह बेरोज़गारी दर लगभग बराबर है. रिपोर्ट ये भी बताती है कि यहां के बेरोज़गार लोग काम करना चाहते हैं. आमतौर पर ये धारणा है कि यहां सारी चीज़े मुफ्त में मिलने से लोग काम नहीं करना चाहते. रिपोर्ट इस मिथक को भी तोड़ती है.
वहीं, अर्थशास्त्री डॉक्टर हनुमंत यादव का कहना है कि इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. इस पब्लिकेशन का इस्तेमाल अर्थशास्त्री करते हैं. आंकड़े पर सवाल तभी उठाए जा सकते हैं तब कोई तीसरी संस्था उनके आंकड़ों का अध्ययन करे और गलत पाए. उनका कहना है कि इन आंकड़ों का इस्तेमाल अर्थशास्त्री और अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक भी करते हैं.
डॉ. हनुमंत यादव मानते हैं कि बेरोज़गारी में कमी की बड़ी वजह स्थानीय स्तर पर रोज़गार मुहैया कराना है. धान की खरीदी को भी वे रेखांकित करते हैं. उनका कहना है कि सरकार ने जो बड़ी संख्या में नियमितिकरण किया. उससे भी फायदा हुआ.
पिछले 50 साल से छत्तीसगढ़ की ज़मीन से जुड़े समाजिक कार्यकर्ता गौतम बंधोपाध्याय बेरोज़गारी में कमी को छत्तीसगढ़ सरकार की नीति में हुए बड़े बदलाव का नतीजा मानते हैं. गौतम बंधोपाध्याय कहते हैं कि राज्य का नीतिगत परिवर्तन, बदलाव और रोज़गार देने की नीयत और इच्छाशक्ति के कारण बेरोज़गारी दर में अंतर दिख रहा है.
गौतम बंधोपाध्याय कहते हैं कि इस सरकार की नीतियों की वजह से किसान निवेश करने की जगह पर खड़ा है. किसान निवेश के लायक बन पाया तभी वो निवेश कर पा रहा है और लोगों को रोज़गार मिल रहा है. वे कहते हैं कि छोटी-छोटी खरीदी हो रही है. लोग ट्रेक्टर खऱीद रहे हैं तो ड्राइवर रखा जा रहा है. छोटे-छोटे स्किल उभर रहे हैं. अर्ध तकनीक और तकनीक वाले रोज़गार उभर रहे हैं.
गौतम बंधोपाध्याय कहते हैं कि राज्य में 2500 रुपये में धान खऱीदी से पूरे कृषि अर्थनीति में उभार आया है. इससे किसानों के पास एक सरप्लस पैसे आए. किसान इस अतिरिक्त पैसे को को पढ़ाई, या कहीं और जाकर रोज़गार करने में खर्च कर रहा है. इस अर्थनीति के उभरने के कारण कृषि व्यवसाय में बहुत सारे लोगों को रोज़गार देने की संभावना बनी है. दो साल में किसान इन्टरप्रोन्योरशिप बढ़ा है. पूरे प्रदेश में एक कृषि नीति में परिवर्तन और महिलाओं की भागीदारी दोनों साथ दिख रही है. लोगों को छोटे मगर काम मिलते दिख रहे हैं काम की गति बढ़ रही है.
कोरोना का पूरे देश में प्रभाव पड़ा, लेकिन छत्तीसगढ़ में नहीं पड़ा. ये राज्य की आंतरिक अर्थनीति के कारण संभव हो पाया. किसानों को बुनियादी खर्चे से निपटने के िलए आय स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो गए. गौतम बंधोपाध्याय कहते हैं कि रोज़गार के अवसर उद्योग बढ़ने या उसकी गति बढ़ने से नहीं बढ़े. ना ही राज्य में दो सालों में कोई औद्योगिक माहौल बना, लेकिन छोटे-छोटे धंधे उभरकर आए जिसमें लोगों को रोजगार मिला. वे कहते हैं कि ओमिक्रोन बंद होगा काम की गति और बढ़ेगी.