रोहित कश्यप, मुंगेली। छत्तीसगढ़ शासन की बहुप्रचारित योजना स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल को लेकर बड़े-बड़े वादे किए गए थे, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है. ताजा मामला जरहागांव से सामने आया है। यहां कक्षा पहली से 9वीं तक के दर्जनों बच्चे रोज आते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए स्कूल में एक भी शिक्षक नहीं है। पिछले साल भी यह स्कूल शिक्षकविहीन रहा. इससे आक्रोशित पालकों ने प्रशासन से कहा है कि या तो स्कूल में शिक्षक की नियुक्त जल्द करें या फिर स्कूल की बंद कर दें.

वर्तमान में शिक्षा विभाग के अफसरों ने दो -तीन हिंदी माध्यम के शिक्षकों को ‘व्यवस्था’ से लगाया है, लेकिन वे भी मजबूरी में काम कर रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम की आवश्यकताओं और गुणवत्ता की बात तो दूर, यहां बच्चों को बुनियादी विषयों की समझ भी ठीक से नहीं मिल पा रही।

वैकेंसी अधर में, सिस्टम लाचार, दूसरा सत्र भी शिक्षकविहीन

स्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू तो की गई थी, लेकिन सरकारी बदलाव और प्रशासनिक उदासीनता के चलते सारी नियुक्तियां अधर में लटक गईं। पिछला सत्र शिक्षकविहीन गुजरा और अब नया सत्र भी उसी अंधेरे में डगमगाता नजर आ रहा है।

छात्रों का पलायन, आंकड़े भी चीख रहे

वैसे तो स्कूल का ये दूसरा सत्र है, शुरुआत में यहां 250 छात्र-छात्राओं की दर्ज संख्या थी। शिक्षक की नियुक्ति नहीं होने के कारण इस सत्र में 30 समेत कुल करीब 84 छात्रों ने टीसी निकालकर स्कूल छोड़ दिया, जिन्हें अब या तो निजी स्कूलों में जाकर मोटी रकम गंवानी पड़ रही है या तो हिंदी माध्यम स्कूलों में अब दाखिला ले लिया है। बच्चों का पलायन और वजह सिर्फ एक — शिक्षा के नाम पर मौन व्यवस्था।

शिकायतें की गईं, मगर असर शून्य

पालकों ने जिला शिक्षा अधिकारी, कलेक्टर, समाधान शिविर और जनदर्शन तक बार-बार पत्राचार और शिकायतें कीं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. फाइलें चलीं पर शिक्षक की नियुक्ति अब तक नहीं हुई।

बच्चों का भविष्य अधर में, पालकों में गुस्सा

स्थानीय पालक और ग्रामीण अब पूरी तरह नाराज और हताश हैं। उनका कहना है कि यदि यही हाल रहा तो वे बच्चों को प्राइवेट या दूसरे जिलों में भेजने पर मजबूर होंगे। कई पालकों ने सवाल उठाया है कि स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने का क्या फायदा, अगर वहां पढ़ाने वाला कोई न हो? कहने को तो इस स्कूल में बच्चे हैं, कक्षाएं हैं, लेकिन शिक्षक नहीं है।
यह सिर्फ शिक्षा तंत्र की विफलता नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के भविष्य से किया गया अन्याय है।

अब जिम्मेदार कौन?

शिक्षा विभाग?,जिला प्रशासन या बदली सरकार की उपेक्षा? जब सवाल बच्चों की शिक्षा का हो तो चुप्पी भी अपराध बन जाती है। इस मामले में जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे।