रायपुर। देश एक हथिनी की मौत से गमगीन है। देश केरल के उस आरोपी के लिए सज़ा चाहता है, जिसने गर्भवती हथिनी के मुंह मे पटाखे भरकर उसे दर्दनाक मौत दी। लोग ये उम्मीद कर रहे हैं कि करीब 6 महिने पहले छत्तीसगढ़ शासन ने लापरवाही से हुई एक हथिनी की मौत पर जो सख्ती दिखाई थी, वैसी ही सख्ती की उम्मीद इस मामले में कर रहा है। ताकि इस तरह की घटना फिर न हो।
केरल के मुख्यमंत्री ने इस घटना को लेकर ये ज़रुर कहा है कि दोषी पर करवाई की जाएगी। लेकिन वहां की सरकार ने कोई बड़ी एवं निर्णायक कार्यवाही नहीं की है। जबकि छत्तीसगढ़ के एक हथिनी की कीचड़ में मौत के बाद जो सख्ती दिखाई थी उसका असर है कि विभाग के अधिकारी हाथियों को लेकर संवेदनशील नज़र आते हैं। कीचड़ में फंसकर एक हथिनी की मौत होने पर वनमंत्री मोहम्मद अकबर ने फौरन इलाके के डीएफओ को सस्पेंड कर दिया और मुख्य वन संरक्षक वन मंडल (वन्यप्राणी) को नोटिस थमा दिया था। मामला सामने आते ही अकबर ने जांच करने के निर्देश दिये थे और करवाई करने में देरी भी नहीं की। संभवतः देश में पहली बार हाथी की माैत के मामले में बड़ी करवाई की थी।
मामला कोरबा ज़िले का था। जहां के वनमंडल अधिकारी डीडी संत पर आरोप लगे थे कि उन्होंने कुल्हरिया गांव में 15 दिसम्बर को कीचड़ में फंसी हथिनी को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया। जिससे उसकी 17 दिसम्बर को मौत हो गई।
दरअसल, वन मण्डल कटघोरा के अंतर्गत कटघोरा वन परिक्षेत्र के एक गांव में 27 दिसंबर को एक हथिनी की मौत हुई। यह हथिनी 25 दिसंबर को कुल्हरिया गांव के दलदल क्षेत्र में फंस गई थी। इस घटना का समाचार प्रसारित और प्रकाशित होने तथा स्थानीय व्यक्तियों द्वारा जानकारी दिये जाने बावजूद भी आपने मादा हाथी को दलदल से निकाले जाने के लिए प्रयास नहीं किया और न ही आपके द्वारा स्वयं घटना स्थल पर पहुंच कर हथिनी को बचाने का प्रयास किया गया। अकबर इस खबर से बेहद क्षुब्द हुए। उन्होंने दो टूक अधिकारियों को ज़िम्मेदारी तय करने के निर्देश देते हुए समझा दिया कि ऐसे मामलो में कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
इस मामले में डीएफओ डीडी संत को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम-1965 के नियम-3 के उल्लंघन का दोषी माना था। उन्हें सस्पेंड किया गया। सरकार ने मुख्य वन संरक्षक वन मंडल (वन्यप्राणी) बिलासपुर, पीके केशर (भारतीय वन सेवा) को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
ये घटना जितनी दुर्भाग्यपूर्ण थी, उतनी ही सरकार की सम्वेदनशीलता सराहनीय थी। इस फैसले के बाद विभाग के तमाम अधिकारियों तक ये सन्देश चला गया कि विभाग में अब तक जो होता आया है, वो नहीं चलने वाला है। किसी भी लापरवाही को वनमंत्री बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसके बाद हाथियों को लेकर जो भी वन विभाग की गतिविधियां हुई उसमें पर्याप्त सतर्कता बरती जा रही है।