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राकेश चतुर्वेदी, भोपाल/उज्जैन। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव आज बुधवार को उज्जैन में भावुक हो गए. पिता पूनमचंद यादव के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित करने आमजन मुख्यमंत्री के निवास पहुंचे थे. इस दौरान अपने पिता के संस्मरण सुनाते हुए मुख्यमंत्री भावुक हो गए.
पिताजी ने गाड़ी में बैठने से ही साफ इंकार कर दिया
मुख्यमंत्री ने बताया कि उनके पिता ऐसे सिदधांतवादी थे कि सीएम बनने के बाद उन्होंने पिता से भोपाल स्थित मुख्यमंत्री निवास चलने का आग्रह किया तो पिताजी ने सरकारी गाड़ी में बैठने से ही साफ इंकार कर दिया. पिताजी ने यह भी कहा कि मैं तो यहीं पर अच्छा हूं. आज तक तुम्हारी सरकारी कार में भी नहीं बैठा और आगे भी नहीं बैठना चाहता हूं. तुम वहां जाकर रहो और लोगों की सेवा करते रहो.
पिता ने चेयरमैन बनने से लेकर सीएम बनने के बाद भी सरकारी सुविधाओं से रखा परहेज
पिताजी की स्मृतियों को साझा करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि उज्जैन विकास प्राधिकरण के चेयरमैन से लेकर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनने पर भी उनके पिता ने सरकारी सुविधाओं से हमेशा परहेज रखा. मुख्यमंत्री ने बताया कि जब वे पहली बार विधायक का चुनाव जीतकर आए और पिताजी के पैर छुए तो पिताजी ने कहा- जीत गए अच्छी बात है, लेकिन हमेशा स्वाभिमान की जिंदगी जीना. कभी किसी के पैरों में मत गिरना. अपने दम पर और कर्म के आधार पर आगे बढ़ना. ईमानदारी और सबको साथ रखकर की गई स्वयं की मेहनत रंग लाती ही है. जब मैं मुख्यमंत्री बना और आशीर्वाद लेने उज्जैन आया तो घर पर चरण स्पर्श करते समय पिताजी ने कहा- अच्छा काम करना, लोगों का भला करना. किसी को दुःख पहुंचे, ऐसा काम कभी मत करना.
पिताजी हमेशा आशीर्वाद के साथ एक नई सीख देते थे: मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री डॉ यादव ने कहा कि पिताजी हमेशा आशीर्वाद के साथ एक नई सीख देते थे. वे अपना काम आखिरी समय तक स्वयं ही करते रहे. कोई मिलने आता तो वे कभी यह नहीं कहते थे कि मैं विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री का पिता हूं. ताउम्र वे सामान्य जीवन जीते रहे. मुख्यमंत्री निवास में जाते समय मैंने पिताजी से साथ चलने का आग्रह किया तो पिताजी ने कहा मैं तो यहीं पर अच्छा हूं. आज तक तुम्हारी सरकारी कार में भी नहीं बैठा और आगे भी नहीं बैठना चाहता हूं. तुम वहां जाकर रहो और लोगों की सेवा करते रहो. मैं यहीं पर अच्छा हूं.
मैं उनके लिए एक पुत्र था, न कि कोई राजनेता
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि पिताश्री के दैनिक जीवन का एक हिस्सा खेत पर जाना भी था. फसल तैयार होने पर उसे अपनी देखरेख में कटवाना और ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ स्वयं उपज बेचने के लिए मंडी जाना, यह उनका रूटीन काम था. हम सब कहते थे कि यह सब अब आप मत किया करो. आराम करो, आपको जाने की क्या आवश्यकता है. वो वे कहते थे कि यह मेरा काम है और मैं ही करूंगा. वे बाजार भी जब-तब सामान लेने निकल जाते थे. कभी उन्होंने किसी की भी किसी काम के लिए मुझसे सिफारिश नहीं की. मैं उनके लिए एक पुत्र था, न कि कोई राजनेता.
पिता के साथ मां को भी याद कर भावुक हुए सीएम
पिताश्री की स्मृतियों के साथ मां को याद करते हुए भी मुख्यमंत्री भावुक हो गए. मुख्यमंत्री ने कहा कि पिताजी की तरह ही मां भी बेहद कर्मशील थीं. दोनों ने मुझे सदैव कर्मशील बने रहने की सीख दी और उनकी इसी सीख पर मैं अब तक अडिग होकर चला हूं साथ ही आगे भी चलता रहूंगा.
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