भाजपा आम तौर पर बाकी दलों से पहले चुनावों में अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित करती है, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनावों में उसके रुख ने चौंका दिया है, क्योंकि सत्तारूढ़ AAP ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं. कांग्रेस ने भी 21 नाम घोषित किए हैं, जबकि भाजपा ने अभी तक अपनी उम्मीदवारों की लिस्ट घोषित नहीं की है. इस रिपोर्ट में जो कारक शामिल हैं जो भाजपा की लिस्ट में देरी का कारण हो सकता है.
देरी की यह भी एक वजह
भाजपा की दिल्ली चुनावों को लेकर चुनाव समिति के ऐलान में भी देरी हुई है, जो माना जाता है कि उम्मीदवारों के चयन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसा कि “द इंडियन एक्सप्रेस” ने रिपोर्ट किया है कि प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में होने वाली केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से पहले कोर कमेटी और राज्य चुनाव समिति दोनों ही नामों की जांच करती है. भाजपा ने दिल्ली चुनावों के लिए अपनी चुनाव समिति घोषित कर दी है, इसलिए उम्मीदवारों की लिस्ट भी जल्दी आने की उम्मीद है.
दिसंबर के आखिरी हफ्ते तक लिस्ट की उम्मीद
भाजपा के सूत्रों ने बताया कि पार्टी अपने उम्मीदवारों के चयन के अंतिम चरण में है और दिसंबर के आखिरी हफ्ते में अपने नामों का ऐलान कर सकती है. बुधवार को पार्टी की कोर ग्रुप की बैठक भी संसद भवन स्थित केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय में हुई है. ऐसे में, राज्य चुनाव समिति और कोर कमेटी की मंजूरी के बाद केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक जल्द ही होनी चाहिए, जैसे ही अंतिम मंजूरी मिलने पर नाम घोषित किए जाएंगे.
जल्द राष्ट्रीय नेतृत्व की बैठक
दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए सभी 70 निर्वाचन क्षेत्रों से 2,000 से अधिक आवेदन मिले हैं, जबकि एक शीर्ष पदाधिकारी ने कहा कि राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से 20 दिसंबर को संसद सत्र समाप्त होने के बाद अंतिम दौर की बैठक होने की संभावना है. उम्मीदवारों के नामों पर. पार्टी के एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया कि हर निर्वाचन क्षेत्र से तीन संभावित उम्मीदवारों की सूची बनाई गई है. उम्मीदवारों का चयन अंतिम चरण में है.
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चुनाव समिति के ऐलान से क्या संकेत?
भाजपा की चुनाव समिति में दिल्ली यूनिट के प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा, दिल्ली के सभी लोकसभा सदस्य और वरिष्ठ नेता दुष्यंत गौतम और मनजिंदर सिंह सिरसा शामिल हैं. लिस्ट में शामिल हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन, कांग्रेस से आए अरविंदर सिंह लवली, और दिल्ली यूनिट के दो पूर्व अध्यक्षों मनोज तिवारी और सतीश उपाध्याय. यह साफ है कि भाजपा अपने पुराने दिग्गजों को भी साथ लेकर मैदान में पूरी ताकत से उतरने वाली है.
किन्हें मिल सकता है मौका?
दिल्ली भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस बार पार्टी महिलाओं और युवाओं पर दांव लगाएगी, खास तौर पर उन धुरंधरों को मैदान में उतारा जाएगा जिन्होंने अभी तक एक भी चुनाव नहीं लड़ा है और दो या उससे अधिक बार चुनाव हार चुके कद्दावरों को कम चांस मिलने के आसार हैं और करीबी हार वालों को भी काफी चांस मिलने के आसार हैं.
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दिल्ली कांग्रेस और आप के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि ये चुनाव बहुत कठिन होने वाले हैं. दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे परवेश वर्मा ने कहा है कि उन्हें नई दिल्ली से चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा गया है. कुल मिलाकर, नई दिल्ली सिर्फ एक तमाशा है. इस बार सभी सीटें कद्दावरों के सामने तगड़े धुरंधर मैदान में होंगी, जहां करो या मरो की लड़ाई होगी.
इस बार आर या पार
1998 से भाजपा दिल्ली की सत्ता से बाहर है, लेकिन इस बार AAP सरकार के खिलाफ कथित एंटी इनकंबेंसी को भुनाकर दिल्ली की सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है, इसके लिए चुनाव जीतने वाले नेताओं को कई कसौटियों पर कसा जा रहा है. जैसा कि हर पार्टी कहने के लिए जिताऊ सूरमाओं पर दांव लगाती है, लेकिन दिल्ली भाजपा अपने धुरंधरों को कई फैक्टरों पर तौल रही है, जैसे ग्राउंड रिपोर्ट, नेताओं, कार्यकर्ताओं का फीडबैक और चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण. शायद यही कारण है कि लिस्ट को देर हो गई है.
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