नीरज उपाध्याय/सारण: लोक संस्कृति के वाहक कवि व भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की 136वीं जयंती मनाई जा रही है, लेकिन क्या कोई यकीन कर सकता है कि भक्तिकालीन भक्त कवियों व रीत कालीन कवियों के संधि स्थल पर कैथी लिपि में कलम चलाकर फिर रामलीला, कृष्णलीला, विदेशिया, बेटी-बेचवा, गबर घिचोर, गीति नाट्य को अभिनीत करने वाले लोक कवि भोजपुरी के ‘शेक्सपीयर’ जनकवि भिखारी ठाकुर का परिवार आज भी गरीबी में जी रहा हैं. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भोजपुरी के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करने वाले मल्लिक जी का परिवार गरीबी का दंश झेल रहा है. 

अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुनाई देती है गूंज

यह सच है कि जयंती या पुण्यतिथि के अवसर पर कुछ गणमान्य अधिकारी एवं राजनेता पहुंचते हैं. कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, लेकिन यह सब मात्र श्रद्धांजलि की औपचारिकताओं तक ही सिमट कर रह जाता हैं, न तो ऐसे किसी आयोजन में भिखारी ठाकुर के गांव वासियों का दर्द सुना जाता है और ना ही उनके दर्द की दवा का प्रबंध करने की बात होती है. कुतुबपुर दियारा स्थित मल्लिक जी का खपरैल व छप्परनुमा निर्मित घर आज भी अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है. यही से भिखारी ठाकुर ने काव्य सरिता प्रवाहित की थी और उनके प्रसिद्धि की गूंज आज भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुनाई देती है.

दो वक्त की रोटी के लिए लड़ रहा सुशील

भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील कुमार आज भी एक अदद चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए मारा-मारा फिर रहा है. दर्द भरी जुबां से सुशील बतातें हैं कि अगर मेरे निकटतम संबंधी नहीं रहते, तो शायद उच्च शिक्षा ग्रहण करना मेरे नसीब में नही होता. हालांकि पढ़ाई तो पूरी हो चुकी है, लेकिन अभी दो वक्त की रोटी के लिए लड़ाई लड़ रहा हूं. समाहरणालय परिसर में चतुर्थ श्रेणी के रूप में सेवा करने के लिए सारण के जिलाधिकारी एवं स्थानीय विधायक और सांसद से लेकर मंत्रियों तक का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अभी तक मुझ जैसे गरीब बेरोजगार युवक की नौकरी कब तक मिलेगी. इससे बुरा हाल तो यह है कि स्थानीय या देश स्तर पर कार्यक्रमों का आयोजन तो होता है, लेकिन मुझे या किसी अन्य परिजनों को बुलाया तक नहीं जाता है.

गरीबी का दंश झेल रहा भिखारी ठाकुर का परिवार

टिमटिमाते दीपक की लौ से समाज में व्याप्त कुरीतियों और सम सामयिक समस्याओं को उजागर करने का महत्ती प्रयास भिखारी ठाकुर ने किया था और आज तक उनकी लौ में सभी लोग राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं, लेकिन दीपक तले अंधेरे वाली कहावत चरितार्थ साबित हो रही है. दबी जुबां से दिल की बात बाहर आती है कि भिखारी ठाकुर के नाम पर कई लोग वृद्धा पेंशन एवं सुख सुविधा का लाभ तक उठा रहे हैं, जबकि उनके परिवार को हर तरह की सुख सुविधाओं की बेहद इंतजार है. एक ओर जहां सुशील जीवकोपार्जन के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहा है. वही उनकी पुत्रवधू व सुशील की मां गरीबी का दंश झेल रही है.

कच्चे मकान में रहने को मजबूर है भिखारी ठाकुर का परिवार

भिखारी ठाकुर के इकलौते पुत्र शीलानाथा ठाकुर थे, जो भिखारी ठाकुर के नाट्य मंडली व उनके कार्यक्रमों से कोई रूची नहीं थी. उनके तीन पुत्र राजेन्द्र ठाकुर, हीरालाल ठाकुर व दीनदयाल ठाकुर भिखारी की कला को जिंदा रखे हुए थे. नाट्य मंडली बनाकर जगह-जगह कार्यक्रम करने लगे, लेकिन इसी बीच उनके बाबू जी गुजर गये. फिर पेट की आग तले वह संस्कार दब गई, अब तो राजेन्द्र ठाकुर भी नहीं रहे. फिलहाल भिखारी ठाकुर के परिवार में उनके प्रपौत्र सुशीला कुंवर, तारा देवी, सुशील ठाकुर, राकेश ठाकुर, मुन्ना ठाकुर सहित कई अन्य बच्चे रहते हैं. वह भी जीर्ण-शीर्ण स्थिति वाले कच्चे मकान में रहने को मजबूर है भिखारी ठाकुर का परिवार.

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