प्रयागराज। अगर पत्नी अपने पति के बुजुर्ग माता पति (सास ससुर) की देखभाल नहीं करती है तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता हैं। यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की है। दरअसल, उच्च न्यायालय में तलाक को लेकर एक याचिका दाखिल की गई थी। जिसमें अपीलकर्ता अपनी नौकरी की वजह से घर से दूर रहता था और वह अपनी पत्नी से माता पिता के साथ रहने की अपेक्षा कर रहा था। फिलहाल HC ने अर्जी को खारिज कर दिया है।
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुरादाबाद के पुलिसकर्मी के तलाक के मामले पर सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्याय मूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि वह पुलिस में है, जिसकी वजह से वह अक्सर घर से दूर रहता है। उसकी पत्नी अपने सास ससुर की सेवा करने का नैतिक दायित्व नहीं निभा रही हैं।
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इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अगर महिला अपने पति के बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करती है तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। ऐसे मामले व्यक्तिगत होते हैं। हर घर की स्थिति क्या है ऐसे में कोर्ट इनकी विस्तार से जांच नहीं कर सकती, यह कोर्ट का काम नही हैं। इस तरह के आरोप व्यक्तिपरक होते हैं। पति की ओर से अमानवीय या क्रूर व्यवहार की कोई दलील नहीं दी गई, जिससे तलाक के लिए जरूरी आरोप तय किए जा सके।
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हाईकोर्ट ने उसकी अपील को आधारहीन मानते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं पाया है। आपको बता दें कि इससे पहले याचिकाकर्ता ने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए मुरादाबाद की पारिवारिक कोर्ट गया था। जहां फैमिली कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद याची ने हाईकोर्ट की शरण ली थी।
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