विधि अग्निहोत्री, रायपुर। पूरी दुनिया 1 अगस्त से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान दिवस मना रही और लोगों को स्तपान कराने के लिए जागरूक किया जा रहा है. व्यापक पैमाने पर महिलाओं को स्तनपान का महत्व बताया जा रहा है. वहीं WHO की रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल ब्रेस्ट फीडिंग स्कोरकार्ड में भारत में बच्चों को माँ का दूध नहीं मिल पाने की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को लगभग 9000 करोड़ का नुकसान हो रहा है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जब बच्चों को पर्याप्त स्तनपान नहीं करया जाता तो लगभग 1 लाख बच्चों की इससे जुड़े कारणों से मौत हो जाती है.
इस रिपोर्ट के अनुसार बोलीविया, मलावी, कंबोडिया, सोलमन और इन जैसे 23 छोटे-छोटे देश जिनका आपने कभी नाम तक नहीं सुना होगा वे भारत से बेहतर स्थिति में हैं. यहाँ तक हमारा पड़ोसी देश नेपाल भी इस मामले में हमसे आगे है. इन सभी देशों ने 60 प्रतिशत से ऊपर के स्तर को पार कर लिया है तो वहीं भारत के लिए इस लक्ष्य को पाना अभी भी चुनौती है.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पिछले साल की रिपोर्ट के अनुसार बच्चे के जन्म के 1 घंचे के अंदर बच्चे को माँ का पहला दूध भारत में महज 44% बच्चों को ही मिल पाता है. सरकार के लगातार प्रयासों और तमाम जागरुकता अभियानों के बाद भी कई नवजात बच्चों को पहले ही घंटे में माँ का पहला दूध नहीं मिल पाता.
वर्ष 2008 से 2015 के बीच के आठ सालों में भारत में 1.113 करोड़ बच्चे अपना पांचवा जन्म दिन नहीं मना पाये और उनकी मृत्यु हो गई. चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इनमें से 62.40 लाख बच्चे जन्म के पहले महीने (नवजात शिशु मृत्यु यानी जन्म के 28 दिन के भीतर होने वाली मृत्यु) में ही मर गए. पांच साल से कम उम्र के बच्चों की कुल मौतों में से 56 प्रतिशत बच्चों की नवजात अवस्था में ही मृत्यु हो गई. इसे हम 5 साल से कम उम्र में होने वाली बाल मौतों में नवजात शिशुओं की मृत्यु का हिस्सा कह सकते हैं.
आठ साल की स्थिति का अध्ययन करते हुए यह पता चलता है कि हर 1000 जीवित जन्म पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में नवजात शिशु मृत्यु दर का हिस्सा लगातार बढ़ता गया है. 5 साल के बच्चों की मृत्यु में वर्ष 2008 में भारत में 50.9 प्रतिशत बच्चे नवजात शिशु थे, जो वर्ष 2015 में बढ़कर 58.1 प्रतिशत हो गए. इन आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है कि मसला केवल स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता-अनुपलब्धता भर का नहीं हैं, संकट कहीं और भी गहरे तक पैठे हुए हैं. वह धीरे-धीरे इस संकट को और बढ़ा रहे हैं.
संकट शुरू होने की उम्र एक शिशु के जन्म से कहीं पहले हो जा रही है. हमारे समाज में प्रजनन की बुनियाद ही कमजोर नींव पर रखी जाती है. कम उम्र में विवाह अब भी जारी है. गर्भावस्था के दौरान सही भोजन की कमी और भेदभाव दूसरा बड़ा संकट है. मानसिक-शारीरिक-भावनात्मक अस्थिरता, विश्राम और जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं न मिलने, सुरक्षित प्रसव न होने और प्रसव के बाद बच्चे को मां का दूध न मिलने की कड़ियां आपस में मिलकर मातृ-शिशु मृत्यु का आधार तैयार करती हैं. यही कारण है कि शिशु स्वास्थ्य के संकेतक अब भी भारत में एक बडी चुनौती बने हुए हैं.
क्यों जरूरी है स्तनपान-
- नवजात बच्चों में डायरिया का खतरा कम करता है स्तनपान.
- माँ के दूध में मौजूद तत्व बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.
- बच्चे के मस्तिष्क के विकास के लिए स्तनपान बेहद जरूरी है.
- स्तनपान कराने से माँ को स्तन कैंसर की संभावना खत्म हो जाती है.
- कुपोषण और सूखा रोग को खत्म करने के लिए स्तनपान जरूरी है.