कोरोना लॉकडाउन के चलते पूरे देशभर में गरीब और मजदूर वर्ग के लोग भूख से तड़प रहे हैं. उनके खाने के लाले पड़े हैं. जिससे वो पलायन करने को मजबूर है. इसके बावजूद कवर्धा में प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई है. यहां 2 हजार खाने के पैकेट को कचरे के ढेर में फेंकवा दिया गया है.

प्रदीप गुप्ता,कवर्धा। राजस्थान के कोटा से छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के बोड़ला में लौटे छात्रों के लिए 2 हजार खाने के पैकेट बनवाए गए थे. इन खाने के पैकेट को ना तो छात्रों को और ना ही किसी जरूरतमंद दिया गया, बल्कि उसे खुले में कचरे के ढेर में फेंक दिया गया. क्या भोजन के पैकेट को गरीबों को नहीं बांटा जा सकता था ? यह लापरवाही किसकी है ? इसका जिम्मेदार कौन है ? इस खाने की कीमत उस गरीब मजदूर या भूख से तड़प रहे व्यक्ति से पूछिए, जो एक वक्त के खाने के लिए तरस रहा है ? क्या लॉकडाउन में अधिकारी अपनी जिम्मेदारी बखूबी नहीं निभा रहे हैं ?

दरअसल कोटा से आने वाले विद्यार्थियों के लिए समय से पहले ही 2 हजार से ज्यादा खाने का पैकेट बनवा लिया गया था. पहले 27 अप्रैल तक छात्रों के आने की जानकारी मिली, लेकिन सभी छात्र 28 अप्रैल की सुबह यहां पहुंचे. जिस वजह से प्लास्टिक बंद खाना खराब हो गया और इसे बोड़ला के बाहर खुले में फेंक दिया गया.

यदि समय रहते इसको गरीबों में बांट दिया जाता है, तो इतने खाने की बर्बादी नहीं होती या फिर यह खाना खाने लायक नहीं था, तो जानवरों को दिया जा सकता था. लेकिन खाने को खुले में फेंक दिया गया. लॉकडाउन में खाने फेंकने को लेकर प्रशासन की किरकिरी भी हो रही है. जबकि अधिकारी एक दूसरे पर पल्ला झाड़ते हुए जवाब देने से बचते नजर आ रहे हैं.

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इस संबंध में जब कवर्धा जिला पंचायत सीईओ के विजय दयाराम से बातचीत कर जानकारी मांगी गई, तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कलेक्टर से बात करने की बात कही. उसके बाद जब हमने कलेक्टर अवनीश शरण से बात की, तो उन्होंने कहा कि इस बारे में एसडीएम से जानकारी ली जाएगी. इस तरह एक के बाद एक सभी अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया. अब सवाल यही है कि 2 हजार खाने की पैकेट की बर्बादी का जिम्मेदार कौन है ?

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