दिल्ली पुलिस(Delhi Police) की स्पेशल सेल ने जिस आदिल हुसैनी(Adil Hussaini) को गिरफ्तार किया, उसने पूछताछ में ऐसी बातें बताईं, जो किसी जासूसी फिल्म से कम नहीं। आदिल और उसका भाई अख्तर हुसैन विदेशों में कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे और दोनों के खिलाफ लुकआउट नोटिस और वांटेड नोटिस जारी थे। पुलिस और जांच एजेंसियों की पकड़ से बचने के लिए दोनों भाइयों ने अपनी पहचान बदल ली, नए नामों से पासपोर्ट बनवाए, और एक समय तो सरकारी रिकॉर्ड में खुद को मृत भी दिखा दियाताकि कोई उन तक पहुंच ही न सके। लेकिन यह चाल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी।
स्पेशल सेल ने पासपोर्ट रिकॉर्ड, वित्तीय लेनदेन और मूवमेंट पैटर्न ट्रैक किए। फर्जी दस्तावेज़ों की परतें खुलती गईं और आखिरकार दोनों गिरफ्तार कर लिए गए।
ईरान से हुई धोखेबाजी की कहानी
स्पेशल सेल की जांच में सामने आया कि आदिल हुसैनी और अख्तर हुसैन की यह आपराधिक यात्रा भारत से नहीं, बल्कि ईरान से शुरू हुई थी। कुछ वर्ष पहले दोनों भाई तेहरान और इस्लामाबाद के बीच आवागमन करते रहे और फिर हाथ साफ करने के लिए लीबिया पहुँचे। यहीं से उनकी ठग नेटवर्क की सबसे खतरनाक कड़ी जुड़ी। जांच अधिकारियों के अनुसार, दोनों भाइयों ने ईरानी न्यूक्लियर एजेंसियों को एक रूसी वैज्ञानिक से हासिल किए गए कथित न्यूक्लियर प्लांट के डिज़ाइन बेचे थे। पहली नज़र में यह डिज़ाइन असली दिखते थे—लगभग 75% हिस्से तकनीकी रूप से सही पाए गए। लेकिन असली चाल यही थी. शेष 25% हिस्सों में दोनों ने जानबूझकर गंभीर तकनीकी खामियाँ डाल दी थीं। यानी सौदा ही मूलतः एक स्ट्रैटेजिक ट्रैप था। पैसे मिले डॉलरों में, और लेन-देन हाथों-हाथ पूरा हुआ।
ISI जासूस के पास से क्या मिला?
मुंबई के यारी रोड, वर्सोवा इलाके से गिरफ्तार किए गए अख्तर के पास से पुलिस ने कई फर्जी दस्तावेज़ बरामद किए। इनमें अलग-अलग नामों से बनाए गए पासपोर्ट, आधार और पैन कार्ड शामिल थे। सबसे चौंकाने वाली बरामदगी BARC (भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर) का एक नकली आईडी कार्ड था, जिस पर उसका नाम अली रज़ा हुसैन लिखा हुआ था। जांचकर्ताओं के अनुसार, अख्तर की पहचान बदलने और झूठे परिचय गढ़ने की यह कोई नई कहानी नहीं है।
पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि 2004 में उसे दुबई से डिपोर्ट किया गया था, जहाँ वह खुद को “क्लासिफाइड डॉक्युमेंट्स संभालने वाला वैज्ञानिक” बताता फिर रहा था। इसके बाद भी वह ईरान और दुबई की यात्राएँ फर्जी पासपोर्ट का इस्तेमाल करते हुए करता रहा। अधिकारियों का कहना है कि यह उसका पुराना “ऑपरेटिंग पैटर्न” है नकली पहचान बनाओ, वैज्ञानिक या रणनीतिक भूमिका का दावा करो, और एक्सेस या भरोसा हासिल करो।
नाम बदलकर छिपते फिरे
रिपोर्ट के अनुसार, गिरफ्तारी के बाद आदिल ने पूछताछ में खुलासा किया कि उसका भाई अख्तर हुसैन फिज़िक्स और मिलिट्री स्ट्रैटेजी का दीवाना है। इसी रुचि को इस्तेमाल करते हुए उसने अपनी पहचान पूरी तरह बदल ली। अख्तर ने हाल ही में खुद को ‘अलेक्जेंडर पाल्मर’ के रूप में पेश किया
एक ऐसा नाम जो अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक टैंक Center for Strategic and International Studies (CSIS) में ‘Warfare, Irregular Threats & Terrorism’ प्रोग्राम से जुड़ा हुआ माना जाता है। यानी बाहरी तौर पर वह खुद को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मामलों का विशेषज्ञ दिखा रहा था। यह पूरी पहचान फर्जी दस्तावेजों, झूठी डिजिटल प्रोफाइल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रेस-प्रूफ नकली नेटवर्क के सहारे खड़ी की गई थी।
‘न्यूक्लियर ऑफिसर’ का बनाया रूप
इतना ही नहीं आदिल ने अपने भाई की तरह ही पहचान बदलने का खेल जारी रखा। पुलिस के मुताबिक, उसने कनाडा की ओंटारियो पावर जनरेशन (OPG) में खुद को “Nuclear Officer” के पद पर कार्यरत दिखाया। यानी वह ऐसे सेक्टर में घुसपैठ कर रहा था, जहां राष्ट्र सुरक्षा और संवेदनशील तकनीकी डेटा सुरक्षित रखा जाता है। ये पहचान डिजिटल प्रोफाइलिंग, एडिटेड डॉक्यूमेंट्स और अंतरराष्ट्रीय सोशल कनेक्शन नेटवर्क के सहारे गढ़ी गई थी।
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