भगवान शिव को भोलेनाथ कह कर भी पुकारा जाता है. कहा जाता है कि प्रेम और भक्ति भाव से उन्हें जो भी चढ़ाया जाता है, उसे वे स्वीकार कर लेते हैं. आज हम आपको एक ऐसे भक्त की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो शिवलिंग पर मुंह से पानी चढ़ाते थे. इतना ही नहीं, वे भगवान को सुअर का मांस तक चढ़ा देते थे. लेकिन फिर भी भगवान शिव ने उनकी भक्ति से खुश होकर उन्हें दर्शन दिए थे.
यह कहानी है भगवान शिव के परम भक्त संत कनप्पा की. उनकी गिनती 63 नयनार संतों में की जाती है. नयनार के बारे में पढ़ने पर यह पता चलता है कि, पहले वे शिकारी थे, लेकिन बाद में संत बन गए. उनके पिता भी एक शिकारी होने के साथ एक शिव भक्त थे. जो शिव के बड़े बेटे कार्तिकेय की पूजा करते थे. लेकिन कनप्पा श्रीकालाहस्तीश्वरा मंदिर में वायु लिंग की पूजा करते थे, जो उन्हें शिकार के दौरान मिला था. यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरूपति जिले में आज भी स्थित है और आस्था का प्रतीक है.
मुंह में भरकर चढ़ाते थे जल
पौराणिक कहानियों के अनुसार, संत कनप्पा को पहले थिन्ना नाम से पुकारा जाता था. थिन्ना शिकारी थे और वह भगवान शिव के परम भक्त थे. लेकिन उन्हें पूजा-पाठ के नियम और विधि-विधान की समझ नहीं थी. वे पास की स्वर्णमुखी नदी से मुंह में पानी भरकर लाते थे और उससे शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे. चूंकि वे शिकारी थे, इसलिए जो भी उन्हें मिलता था, उसे शिव को अर्पित कर देते थे, यहां तक कि एक बार उन्होंने सुअर का मांस भी शिव को चढ़ा दिया था. हालांकि, सबका ध्यान रखने वाले भोलेनाथ अपने इस भक्त की आस्था से काफी खुश थे, उन्हें पता था कि इसे पूजा करनी नहीं आती है. ये ना तो मंत्र जानता है और ना ही विधि विधान. लेकिन एक दिन कनप्पा की आस्था को देख भगवान शिव ने अपने भक्त थिन्ना की परीक्षा लेने को ठानी.
शिव जी ने ली भक्त की परीक्षा
भगवान शिव ने उस मंदिर में उस वक्त भूकंप के तेज झटके दिए, जब वहां बाकी साथियों और पुजारियों के साथ कनप्पा भी मौजूद थे. जैसे ही भूकंप के तेज झटके आए, सबको लगने लगा कि मंदिर की छत गिरने वाली है और सब मंदिर से भागे गए, लेकिन कनप्पा उस मंदिर में टिका रहा और अपने शरीर से शिव लिंग को पूरी तरह से ढक लिया ताकि शिवलिंग को कोई क्षति ना पहुंचे. मंदिर में स्थित उस शिवलिंग पर तीन आंखें बनी हुई थीं… जैसे ही भूकम्प के झटके थोड़ा कम हुए, कनप्पा ने देखा कि शिवलिंग पर बनी एक आंख से रक्त और आंसू एक साथ निकल रहे हैं. कनप्पा को समझ में आ गया कि किसी पत्थर से शिवजी के एक नेत्र में चोट लग गई है. इसके बाद कनप्पा ने फौरन अपनी एक आंख बिना किसी हिचकिचाहट के अपने वाण से निकाली और उसे शिवलिंग पर लगा दिया. कनप्पा ने क्यों रखा शिवलिंग पर पैर ?
भगवान शिव हुए प्रसन्न
दरअसल, शिवलिंग पर कनप्पा ने जैसे ही अपनी एक आंख लगाई, वैसे ही शिवलिंग के उस नेत्र से खून बहना बंद हो गया. लेकिन शिवलिंग की दूसरी आंख से भी खून निकलना शुरू हो गया. ये देखकर कनप्पा बेहद दुखी हो गया. उसने अपनी दूसरी आंख भी शिवलिंग पर लगाने का फैसला किया. लेकिन तभी उसके मन यह विचार आया कि जब मैं अपनी दूसरी आंख भी निकाल लूंगा, तो बिल्कुल अंधा हो जाऊंगा. ऐसे में शिवलिंग की सही जगह पर अपनी आंख मैं कैसे लगा पाउंगा. ऐसा सोचते हुए उसे एक उपाय सूझा और फौरन उसने अपना एक पांव उठाकर शिवलिंग पर रख दिया. उसने अपने पांव के अंगूठे को शिवलिंग के उसी आंख के पास रख दिया जिससे खून बह रहा था. इसके बाद जैसे ही उसने अपनी दूसरी आंख निकालने को तीर उठाया, भगवान शिव तुरंत प्रकट हुए और उसे रोक लिया. भगवान शिव ने थिन्ना की भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर उसकी दोनों आंखें ठीक कर दी. इसी घटना के बाद थिन्ना को नया नाम ‘कनप्पा’ मिला.
बता दें, यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरूपति जिले के श्रीकालहस्ती शहर में स्थित है, जिसका बाहरी हिस्सा 11वीं सदी में राजेन्द्र चोल ने बनवाया था. हालांकि बाद में विजय नगर साम्राज्य के राजाओं ने इस मंदिर का मरम्मत करवाया. श्रीकालहस्ती शहर में बना यह अनोखा मंदिर आज भी कनप्पा की आस्था का प्रतीक है.
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