दिल्ली/रायपुर. अरविंद केजरीवाल एंड टीम ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनको एक अनजान से एडवोकेट की एक चिट्ठी इतनी भारी पड़ जाएगी. अगर संविधान और कानूनी दांवपेंचों के आधार पर बात करें तो आम आदमी पार्टी के एकसाथ 20 विधायकों की सदस्यता लगभग लगभग खत्म हो गई है.

भले ही अरविंद केजरीवाल की टीम के नेता और प्रवक्ता निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा रहे हों लेकिन सच यही है कि आप के विधायकों की सदस्यता खत्म होना तय है. भले ही आम आदमी पार्टी ने निर्वाचन आयोग के निर्णय के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही हो लेकिन पार्टी को पहले ही पायदान पर करारा झटका लग गया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी के विधायकों की याचिका खारिज कर दी है. इतना ही नहीं कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के विधायकों को कड़ी फटकार भी लगाई है कि उन्होंने निर्वाचन आयोग की सुनवाई में सहयोग नहीं दिया.

दरअसल लल्लूराम डॉट कॉम की टीम के पास याचिकाकर्ता एडवोकेट प्रशांत पटेल की राष्ट्रपति को भेजी याचिका से लेकर निर्वाचन आयोग को भेजे गए जवाब की कापी उपलब्ध है. जिसमें प्रशांत पटेल ने बेहद बारीकी से संविधान से लेकर कानून के प्राविधानों का उल्लेख करते हुए अरविंद केजरीवाल एंड टीम को चारों खाने चित कर दिया.

हमारी टीम से एक्सक्लूसिव बातचीत में याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल ने कहा कि आम आदमी पार्टी विधायकों के पास अब विधायकी खोने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इस बारे में निर्णय लेने का अंतिम अधिकार राष्ट्रपति के पास है. राष्ट्रपति ने इस पूरे संकट पर कानून और संविधान के प्राविधानों के मुताबिक काम किया. उपलब्ध संवैधानिक उपचारों के तहत ही राष्ट्रपति ने निर्वाचन आयोग से इस मामले पर राय ली. राष्ट्रपति के आदेश पर ही निर्वाचन आयोग ने अपनी सलाह राष्ट्रपति को देने के साथ-साथ इस मामले में अपना फैसला सुनाया.

हम आपको इस खबर में वो सच बताने जा रहे हैं जो अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम किसी को बताना नहीं चाहती. निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद आप के नेता और प्रवक्ता मीडिया में ये बयान दे रहे हैं कि उनके द्वारा नियुक्त संसदीय सचिवों ने न तो कोई सरकारी सुविधा ली और न ही कोई आर्थिक लाभ लिया. जबकि हमें उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक ये स्पष्ट है कि लाभ का पद सिर्फ आर्थिक लाभ ही लेना नहीं है बल्कि उपलब्ध कोट के मुताबिक-

‘‘In this connection the following observations from Kaul & Shakdher’s famous and authoritative book on Parliamentary Procedure (p.78) are worth quoting:

“ ‘Profit’ normally connotes any advantages, benefit or useful consequences. Generally, it is interpreted to mean monetary gain but in some cases benefits other than monetary gain may also come within its meaning. “office of profit” is one to which some power to patronage is attached or in which the holder is entitled to exercise the executive functions, or which carries dignity, prestige or honour to the incumbent thereof.”

एडवोकेट प्रशांत पटेल ने अपनी याचिका में पुरजोर तरीके से इस बात को इंगित किया कि कैसे आम आदमी पार्टी के विधायकों ने संसदीय सचिव के पद का जमकर प्रचार किया औऱ बकायदा बैनर औऱ होर्डिंग्स के जरिए लोगों को अपने रुतबे से अवगत कराया. इतना ही नहीं बकायदा पुराने सचिवालय में नियम विरुद्ध तरीके से इन संसदीय सचिवों को कमरे अलाट किए गए. जो कि सीधे-सीधे आफिस आफ प्राफिट के दायरे में आता है. याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल ने सिलसिलेवार तरीके से अपनी याचिका में बताया कि कैसे अरविंद केजरीवाल ने गर्वमेंट आफ एनसीटी आफ दिल्ली एक्ट 1991 की धारा 15 और धारा 15(3) का जिक्र करते हुए कहा कि किस तरह आम आदमी पार्टी ने अपने विधायकों को लाभ का पद दिलाने के लिए कानून की धज्जियां उड़ा दी.

एक्ट की धारा 15 (3) में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ऐसे मामलों में राष्ट्रपति का निर्णय ही आखिरी निर्णय होगा. राष्ट्रपति ने इस बारे में निर्वाचन आयोग से राय लेने के बाद आप के विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी.

लल्लूराम डॉट कॉम की टीम को उपलब्ध एक्सक्लूसिव दस्तावेजों और याचिकाकर्ता एडवोकेट प्रशांत पटेल से हुई बातचीत के बाद ये साफ हो गया कि आम आदमी पार्टी के विधायकों को कोई राहत कोर्ट से भी नहीं मिलने वाली है. बेहद दिलचस्प बात ये है कि जिस समय मीडिया में ये खबर दिखाई जा रही थी कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी के विधायकों की याचिका खारिज कर दी है. ठीक उसी समय हमारी टीम याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल से बात कर रही थी. जहां प्रशांत ने बेहद आश्वस्त होते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी भले ही इस मामले में कितना भी प्रोपैगैंडा कर ले लेकिन उसे कोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने वाली है. इस मामले में निर्णय देने की सुप्रीम अथारिटी राष्ट्रपति हैं और राष्ट्रपति ने भी आम आदमी पार्टी के विधायकों को कोई भी राहत नहीं दी.

हमें उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक ये तय हो गया है कि आम आदमी पार्टी भले ही कितना तमाशा अपने विधायकों को बचाने के लिए करे लेकिन उसके विधायकों की सदस्यता जानी तय है.

उधर दिल्ली में हुए इस घटनाक्रम के बाद छत्तीसगढ़ के 11 संसदीय सचिवों की विधायकी पर तलवार लटक गई है. भले ही इन 11 संसदीय सचिवों की विधायकी जाने से सरकार की सेहत पर कोई खास फर्क न पड़े लेकिन इन विधायकों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं. देखना है दिल्ली की तपिश में छत्तीसगढ़ के विधायक झुलते हैं या फिर सही सलामत बचने में कामयाब हो जाते हैं.