भारत के प्राचीन मंदिर केवल आस्था और पूजा का स्थान नहीं, बल्कि उच्चकोटि की वास्तुशास्त्र और ऊर्जा विज्ञान का अद्भुत संगम है। मंदिरों के केंद्र में स्थित गर्भगृह को हमेशा गहराई में और अपेक्षाकृत अंधेरे में बनाया जाता है। आखिर क्यों? दरअसल, मंदिर का गर्भगृह उस स्थान का प्रतिनिधित्व करता है जहां दिव्य ऊर्जा का संकेन्द्रण होता है। इसे पृथ्वी की नाभि माना गया है। गहराई में बने होने के कारण यह स्थान बाहरी शोर-शराबे, प्रदूषण और सूर्य के तीव्र प्रकाश से मुक्त रहता है, जिससे वहां की सकारात्मक ऊर्जा स्थिर और सघन बनी रहती है।
गर्भगृह के वास्तु में पंचतत्वों का संतुलन भी ध्यान में रखा जाता है – धरती (गहराई), जल (अभिषेक), अग्नि (दीप), वायु (गुंजायमान मंत्र), और आकाश (गुंबदाकार छत)। यह संयोजन एक विशिष्ट ऊर्जा क्षेत्र उत्पन्न करता है, जिसे प्राण क्षेत्र कहा जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी अद्भुत
यही वजह है कि गर्भगृह में प्रवेश करते ही मन शांत होता है, और ध्यान-योग की स्थिति उत्पन्न होती है। कई मंदिरों में तो मूर्ति के नीचे तांबे या पारे की प्लेट भी गाड़ी जाती है, जिससे वहां की ऊर्जा लगातार सक्रिय बनी रहे। मंदिरों का यह गहन निर्माण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सूक्ष्म ऊर्जा विज्ञान और मानसिक शांति के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से भी अद्भुत है। गर्भगृह की गहराई में छिपा है, आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा का रहस्य।
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