भारत में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष महत्व है. ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन धूमधाम से निकली जाती है. रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नगर यात्रा पर निकलते हैं और कुछ दिनों के लिए मुख्य मंदिर के निकट स्थित गुंडिचा देवी मंदिर में विश्राम करते हैं.

यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ का स्वागत अपने मौसी के घर धूमधाम से किया जाता है और उन्हें यहां कई प्रकार के भोग चढ़ाए जाते हैं. इस अवधि में भगवान जगन्नाथ की उपासना या दर्शन करने से साधक के सभी दुःख दूर हो जाते हैं और उनकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. यहां जगन्नाथ भगवान, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की सेवा की जाती है और 9 दिनों के बाद तीनों पुनः यात्रा अपने घर की ओर निकल पड़ते हैं.

भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा देवी कौन हैं?

गुंडिचा देवी को भगवान जगन्नाथ की मौसी के रूप में पूजा जाता है और रथ यात्रा के बाद कुछ दिनों तक भगवान जगन्नाथ अपने मौसी के घर रहते है. मुख्य मंदिर के निर्माता की रानी का नाम गुंडिचा था और उन्हें ही प्रभु जगन्नाथ की मौसी माना जाने लगा.

28 जून को मौसी के घर से मंदिर लौटेंगे भगवान

बुधवार शाम तकरीबन 6 बजे तक भगवान जगन्नाथ के गुंडिचा मंदिर पहुंचने की संभावना है. वहां भगवान अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ 9 दिन तक रुकेंगे. इसके बाद पंचांग के मुताबिक आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को यानी 28 जून को वापस मंदिर लौटेंगे. मंदिर लौटने वाली इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है.

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