रायपुर। कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद को छत्तीसगढ़ से मुक्त होना था. ये तय था. लेकिन जिन हालात में वो यहां के प्रभार से मुक्त हो रहे हैं. उसने कई सवालों और चर्चाओं को छेड़ दिया है.
पिछले हफ्ते बीके हरिप्रसाद सरगुजा के दौरे पर थे. वहां से उन्हें झारखंड जाना था. चूंकि हरिप्रसाद झारखंड के भी प्रभारी हैं. लेकिन हरिप्रसाद झारखंड नहीं गए. वे वापस दिल्ली चले गए. इसे लेकर ये बात सामने आई कि उन्हें दिल्ली तलब किया गया है. दिल्ली जाने के बाद उनके छत्तीसगढ़ के प्रभार से मुक्त होने की ख़बर आई.
लेकिन इस मामले में प्रदेश संगठन के नेता यही कहते हैं कि हरिप्रसाद अचानक नहीं गए. उनका कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था. जबकि दूसरी चर्चा है कि उन्हें अचानक दिल्ली तलब किया गया.
अगर उन्हें अचानक दिल्ली तलब किया गया तो इसकी वजह क्या थी. इसमें दो तरह की चर्चाएं हैं. पहली चर्चा है कि राहुल गांधी विदेश से लौट आए थे और बीके हरिप्रसाद को राहुल गांधी से मिलना था. लिहाज़ा बीके हरिप्रसाद को वक्त मिल गया और वे दिल्ली चले गए. खुद बीके हरिप्रसाद ने बताया है कि अब वे अपने गृहराज्य कर्नाटक में काम करना चाहते हैं जहां छै महीने बाद चुनाव हैं इसलिए तीन-तीन राज्यों के प्रभार से मुक्त होना चाहते थे.
लेकिन दूसरी चर्चा यह भी है कि उन्हें सरगुजा में जेसीसी सुप्रीमो अजीत जोगी पर टिप्पणी भारी पड़ गई. बीके हरिप्रसाद ने जाति मामले में अजीत जोगी पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी. चर्चाओं के मुताबिक इस बात से आलाकमान नाराज़ हो गई.
चर्चाओं के मुताबिक आलाकमान को ये फीडबैक गया कि लगातार जोगी पर हमले से पार्टी को नुकसान हो रहा है और रमन सिंह को फायदा हो रहा है. पार्टी आलाकमान को इस बात पर आपत्ति थी कि हरिप्रसाद ने – जोगी से दोस्ती ज़्यादा फायदेमंद है या दुश्मनी- बिना इस बात का आकलन किए, कैसे ऐसा बयान दे दिया.
चर्चाओं के मुताबिक इसी के चलते हरिप्रसाद नप गए. इस्तीफा उनका पहले से था. बस मंजूरी करने की जानकारी देनी थी. इसलिए उन्हें बुलाकर कर्नाटक पर फोकस करने को कह दिया गया. हांलाकि ये थ्योरी केवल चर्चाओं में है. संगठन के सुत्र इसे सिरे से खारिज़ करते हैं. उनका कहना है कि जोगी खुद ही फंसे हैं. एक-एक करके उनके नेता वापस कांग्रेस में आ रहे हैं तो इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जोगी की स्थिति क्या है.
अब कौन सी चर्चा सही है कौन सी गलत. यह तय कर पाना मुश्किल है लेकिन हरिप्रसाद ने जाते-जाते छत्तीसगढ़ की राजनीति ऐसे गर्मा दी है कि जिनती मुंह उतनी बातें.