हरियाणा विधानसभा चुनाव में BJP की रणनीति इस बार कुछ बदली हुई नजर आ रही है. पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से परहेज कर रही है. हरियाणा में PM मोदी की दोनों रैलियों से खट्टर को दूर रखा जाना कुछ ऐसा ही संकेत दे रहा है.
अभी तक PM मोदी हरियाणा में 2 चुनावी रैलियों को संबोधित कर चुके हैं. पहले 14 सितंबर को कुरुक्षेत्र में और सोनीपत में. मनोहर लाल खट्टर दोनों ही रैलियों में नजर नहीं आए. 90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में 5 अक्टूबर को मतदान होना है.
क्योंकि खट्टर को जब 2014 में हरियाणा का पैराशूट CM बनाकर मोदी-शाह ने भेजा था तो पंजाबियों ने इस फैसले को काफी पसंद किया था. लेकिन अब वही खट्टर भाजपा में नेगेटिव नेता करार दे दिये गए हैं, जिनसे सभी समुदायों के वोट छिटक सकते हैं, इसलिए खट्टर को हाशिये पर ढकेल दिया गया है.
हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर के आने के बाद जबरदस्त जाट आरक्षण आंदोलन चला था. लेकिन खट्टर के नेतृत्व वाली BJP सरकार ने उस आंदोलन को बेरहमी से कुचल दिया था. मूरथल के एक ढाबे पर महिलाओं से गैंगरेप का आरोप लगाकर हरियाणा के समुदाय को बदनाम भी किया गया और अंत में उसमें कुछ नहीं निकला. जाट आरक्षण आंदोलन को कुचलने से हरियाणा जाट बनाम पंजाबी में उसी तरह बांट दिया गया, जिस तरह ऐसा ही प्रयोग BJP ने तमाम प्रदेशों में हिन्दू बनाम मुसलमान को बांटने के लिए किया. UP, असम, MP, राजस्थान के CM और BJP नेता हिन्दू-मुस्लिम खाई को बढ़ाने में कामयाब रहे. BJP शासित राज्यों में समुदायों को बांटने की राजनीति आज भी जारी है.
प्रदेश भाजपा के नेताओं का कहना है कि बीजेपी गैर-जाट, पिछड़े और पंजाबी वोटों को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है, उनका मानना है कि वे अभी भी बीजेपी के पीछे एकजुट हो सकते हैं, जैसा कि वे 2014 और 2019 में भी रहे हैं. लेकिन खट्टर को लेकर पंजाबियों, पिछड़ों और अन्य गैर जाट बिरादरियों में इतनी नकारात्मकता है कि बात बन नहीं पा रही. मोदी-शाह इस बात को पहले ही भांप गये थे तो उन्होंने हरियाणा चुनाव की घोषणा से पहले ही खट्टर को CM पद से हटाकर नायब सिंह सैनी को वहां बैठा दिया. खट्टर को केंद्र में मंत्री बना दिया गया. लेकिन भाजपा का यह फॉर्मूला भी फेल हो गया.
BJP ने इसके बाद कांग्रेस ने भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच मतभेद को खूब प्रचारित किया. यह सच भी था. लेकिन शैलजा कांग्रेस के चुनाव अभियान में फिर से जुट गईं. गुरुवार 26 सितंबर को वो राहुल गांधी की रैलियों में शामिल हो रही है. राहुल की रैली में भीड़ जुटाने के लिए मेहनत करती दिखाई दीं. कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह तक दावा किया गया था कि शैलजा ने खट्टर और किरण चौधरी से संपर्क साधा है ताकि भाजपा में उनकी एंट्री ठीक से हो सके. इसके बाद भाजपा ने आम आदमी पार्टी से उम्मीदें लगाईं कि वो कांग्रेस के वोट काटकर भाजपा की मदद करेगी. यह रणनीति भी फेल हो गई.
PM मोदी की सोनीपत रैली से खट्टर को बाहर रखने की वजह बताते हुए भाजपा के एक नेता ने कहा- “सोनीपत में खट्टर की मौजूदगी की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि उनकी मौजूदगी जाट बहुल विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को अच्छी स्थिति में नहीं खड़ा करेगी.” लेकिन यही भाजपा नेता 14 सितंबर को मोदी की कुरूक्षेत्र रैली से खट्टर को दूर रहने का वाजिब कारण नहीं बता पाये, क्योंकि कुरुक्षेत्र जाट बहुल न होकर पंजाबी, दलित और OBC वाला इलाका है. इसके पड़ोस में करनाल लोकसभा सीट है, जहां से खट्टर सांसद हैं.
लेकिन इससे BJP ने अपनी स्थिति खुद हास्यास्पद बना ली है. एक तरफ तो खट्टर को एक कोने में पटक दिया गया लेकिन पार्टी पार्टी हरियाणा मुख्यमंत्री के रूप में खट्टर के कार्यकाल के दौरान “नो पर्ची, नो खर्ची” (नौकरियों के लिए पैसा नहीं) जुमले और सुशासन सिद्धांतों के नाम पर वोट मांग रही है. क्योंकि साढ़े 9 साल से खट्टर ही मुख्यमंत्री थे. सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए, भाजपा ने राज्य में 30% से अधिक OBC वोटों को भुनाने के लिए 12 मार्च को खट्टर की जगह अपने OBC चेहरे नायब सिंह सैनी को CM बनाया. सैनी को ही आगामी चुनावों के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी हैं.
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